उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
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सालिहा के मन में विक्षोभ का आरम्भ हुए एक सप्ताह से ऊपर हो चुका था। फिर एक दिन शिव बहिन से मिलने आया। रविवार का दिन था। प्रज्ञा और ज्ञानस्वरूप सिनेमा देखने गये हुए थे। दोनों अम्मियाँ और कमला ड्राइंगरूम में बैठीं चाय की प्रतीक्षा कर रही थीं।
कमला अपने मन में उत्पन्न क्रांति का विश्लेषण कर रही थी। वह जब से दिल्ली में अपने भाई के घर पर आकर रहने लगी थी, तब से वह नित्य भाभी से परमात्मा के विषय में पूछगीछ और फिर उस पूछगीछ पर गौर किया करती थी। बस, इसने ही उसके मस्तिष्क में हलचल और तबदीली पैदा की थी। ऐसा उसको समझ आने लगा था।
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