उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘यह तुम जानो।’’
‘‘मैं तो वही हूँ जो तुम्हारे अब्बाजान हैं?’’
‘‘लेकिन अम्मी! अब्बाजान तो खुदा-परस्त नहीं हैं।’’
‘‘मगर वह तो कहते हैं कि वह खुदा को मानते हैं?’’
‘‘मैं दावे से कहती हूँ कि वह झूठ कहते हैं। उन्होंने उस दिन, जिस दिन गोली चलाई थी, खुदा के कानून की तलफी की थी। मुझ बेगुनाह को मार देने की कोशिश की थी।’’
सालिहा भी उस दिन की गोला-बारी को पसन्द नहीं करती थी।
पुलिस वालों को रिश्वत दे, छूटकर जब वे इम्पीरियल होटल में पहुँचे थे तो उसने अपने खाविन्द से कहा था, ‘‘हजरत! यह ठीक नहीं हुआ? आप तो मेरी ही लड़की को हलाल करने वाले थे।’’
उसके पति का कहना था, वह मेरा कहना नहीं मान रही थी।
अब वही लड़की कह रही है कि यह खुदाई कानून के खिलाफ था।
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