उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘मगर मजहब तो नहीं बदलोगी? तुम्हारी भाभी ने मुझे वह बताया है कि नाम का मजहब से ताल्लुक नहीं।’’
‘‘मगर भाईजान का मजहब भी बदल रहा है?’’
‘‘कैसे कहती हो यह?’’
‘‘वेद के मजहब को मानने वाले हो रहे हैं।’’
‘‘वह क्या होता है?’’
‘‘वेद बहुत पुरानी चार किताबें हैं। उसमें कुछ बातें लिखी हैं। भाईजान और बड़ी अम्मी उन बातों को मान रही हैं।’’
‘‘और तुम?’’
‘‘मैं तो शादी के बाद फैसला करूँगी।’’
‘‘यह क्यों?’’
‘‘इसलिए कि मजहब का ताल्लुक शादी से है। इस पर भी मैं एक बात समझ गई हूँ कि मैं खुदा को मानती हूँ। इस घर में हम चारों लोग खुदा-परस्त हैं।’’
‘‘चारों कौन-कौन हैं?’’
‘‘मैं, अम्मी, भाभीजान और भाईजान। एक पाँचवाँ भी आ रहा है मगर वह खुदा को मानेगा या नहीं, कहा नहीं जा सकता।’’
‘‘और मैं क्या हूँ?’’ सालिहा ने पूछ लिया।
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