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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘‘प्रज्ञा भाभीजान ने जब भाईजान से शादी की तो इन्होंने सरकारी कानून से शादी की। इस कानून से कोई मुलमानी कौम में भी रह सकता है, मगर शादी एक ही कर सकता है। मगर भाभीजान ने भाईजान को अपनी कौम में शामिल कर लिया है। वे अब हिन्दू हैं।’’

‘‘भाभीजान ने समझाया है कि वे सरकारी तरीके से शादी करने से दोनों कौमों की हद पर खड़े हो जायेंगे। उनको एक तरफ हो जाना चाहिए। इस ख्याल की तस्दीक भाभी के हमला होने ने की है। भाभी अपनी औलाद को हिन्दू कौम में शामिल करना चाहती हैं।’’

‘‘मैं शादी कहाँ करूँगी, अभी फैसला करना है। जब फैसला हो जाएगा तो पता चलेगा कि मैं मुसलमान कौम में हूँ या हिन्दू कौम में।’’

‘‘मगर तुम मुसलमान की औलाद गैर मुसलमान कैसे हो सकती हो?’’

‘‘मेरे मास्टर कहते हैं नाम का, बोली जाने वाली ज़बान का, वीणा अथवा बाँसुरी बजाने का कौम के साथ ताल्लुक नहीं।’’

‘‘मगर मैंने तो सुन रखा था कि कौमीयत मुल्क में रहने से होती है?’’

‘‘थी तो यही बात, मगर जब से इस्लाम और ईसाइयत दुनिया में फैली है, कौमीयत मुल्क के साथ जुड़ी नहीं रह सकी। ईसाई जहाँ जाते हैं, अपनी कौमीयत वहाँ अलहदा बना लेते हैं। ऐसा ही मुसलमान कर रहे हैं।’’

‘‘हिन्दुस्तान में रहते हुए सब मुसलमानों को हिन्दुस्तानी, मतलब यह है कि हिन्दू हो जाना चाहिए था। उन्होंने दो बातें की हैं। एक तो हिन्दुस्तान का नाम ही बदल दिया है। यह था हिन्दुओं का मुल्क मगर यह हो गया है भारत और उसमें हिन्दू, सिक्ख, मुसलमान, ईसाई सब भारती हो गए हैं। इसी से कहती हूँ कि कौमीयत एक छोटा-सा फिरका है।’’

‘‘मैं अभी तक भारती मुसलमान हूँ, मगर जिससे शादी करूँगी, तब वह हो जाऊँगी जो वह होगा। तब मेरी कौमीयत बदल जायेगी।’’

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