उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘और अम्मी! यदि यही रफ्तार चलती रही तो फिर अम्मी रात को जागा करेंगी और दिन में सोया करेंगी।’’ कमला ने कह दिया।
सालिहा मुस्कराई और एक खाली कुर्सी पर बैठते हुए बोली, ‘‘नहीं! यह नहीं होगा। मैं कल से जल्दी सोया करूँगी। रात तो मैं दो बजे के बाद ही सो सकी थी। आज रात मैं ‘स्लीपिंग पिल्ले’ ले लूँगी।’’
‘‘नहीं अम्मी! यह ठीक नहीं होगा। उसकी आदत बहुत नुकसान करेगी?’’
‘‘तो क्या किया जाए? रात-भर तुम्हारी बीवी की बात की दिमाग में चक्कर काटती हुई तंग करती रहती है।’’
‘‘तो रात भी,’’ कमला ने पूछ लिया, ‘‘अपने मरने की फिक्र करती रही हो?’’
‘‘मरने की नहीं। मगर मरने के बाद कब्र में दफनाए जाने पर कीड़े-मकौड़ों के काट खाने की बात पर कुछ परेशानी, रही थी और नींद नहीं आई। जब यह ख्याल आया कि कीड़े तो रूह तक पहुँच नहीं सकते, तब यह सोचना बन्द हुआ और सो सकी थी। मगर यह रात के दो बजे के बाद हो सका था।’’
प्रज्ञा ने कहा, ‘‘अम्मी! रूप तो बहुत सूक्ष्म पदार्थ है। यह कब्र से निकल जाती है।’’
‘‘तो ऐसा कुरआन शरीफ में लिखा है?’’
‘‘वह तो मैंने पढ़ी नहीं। मुझे अपने धर्मशास्त्र की बात का पता है। वहाँ कहा है कि मनुष्य के मरते ही वह जिस्म से निकल रोशनी की तरफ जाती है।’’
‘‘मगर जो कुछ कुरआन में है मैं तो उस पर ही ऐतकाद रखती हूँ।’’
‘‘तो अम्मी! कब्र में रहने की तकलीफ आपको तंग नहीं कर रही, यह कुरआन पर ऐतकाद है जो तंग कर रहा है?’’
‘‘मगर कुरआन से पहले जो किताबें कही गई हैं, वह तो हजरत वानी-उल-इस्लाम ने रद्द कर दी हैं।’’
‘‘तो यह रद्द करना आपको तकलीफ दे रहा था?’’
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