लोगों की राय

उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

391 पाठक हैं

खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...

2

ठीक साढ़े आठ बजे अल्पाहार हुआ। नौ बजे ज्ञानस्वरूप अपनी दुकान को जाने के लिए तैयार हो गया। नाश्ते के बाद ग्यारह बजे तक कमला एक पुस्तक ले पढ़ती रही और फिर साढ़े ग्यारह बजे से साढ़े बारह बजे तक वह प्रज्ञा से संस्कृत सीखने लगी। यह उसकी दैनिक दिनचर्या थी। दोपहर बाद एक बजे मध्याह्न का भोजन, तदनन्तर एक घंटा आराम और फिर ड्राइंगरूम में बैठ कुछ हाथ से सिलाई-बुनाई इत्यादि का काम करते हुए चर्चा। इस समय कमला समाचार-पत्र पढ़ करती थी तथा सामयिक बातों पर बातचीत चलती थी।

आज इस समय सालिहा भी ड्राइंगरूम में आ बैठी। एकाएक स्टेट्समैन दैनिक में एक लेख पढ़ती-पढ़ती कमला हँस पड़ी। तीनों बड़ी औरतें कमला का मुख देखती रही गयीं।

‘‘भाभी!’’ कमला ने कहा, ‘‘किसी ने यह लेख लिखा है कि इस यूनिवर्स के सितारे सब बहुत ही तेज गति से उड़ते हुए एक केन्द्रीय स्थान से बाहर को भागे जा रहे हैं।’’

‘‘मैं हँसी इस कारण थी कि हम उनमें से एक जिसे जमीन कहते हैं, पर टिके हुए हैं। अगर कहीं हमारे पाँव इस पर से फिसले तो फिर हम कहाँ उड़ती फिरेंगी?’’

उत्तर प्रज्ञा ने दिया, ‘‘यह किसी अज्ञानी वैज्ञानिक का लेख है। आज एक नया विचार पैदा हो गया है।’’

‘‘क्या?’’ कमला का प्रश्न था।

‘‘यही कि नक्षत्र और तारागण कम से कम हमारी आकाश-गंगा में स्थिर हैं और एक स्थिर गति से कदाचित् किसी बड़े नक्षत्र के चारों ओर चक्कर लगा रहे हैं।’’

‘‘यही हमारे शास्त्रों में भी कहा है। वहाँ लिखा है–येन द्यौ रुग्रा पृथिवी च दृढ़ा...।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book