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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘‘मतलब यह है कि यह आसमान के सितारे और हमारी पृथ्वी, परमात्मा ने स्थिर कर रखी है और यह प्रलय काल तक स्थिर रहेगी।’’

‘‘और प्रलय कब होने वाली है?’’ सालिहा ने पूछ लिया।

‘‘अभी दो अरब पैंतीस करोड़ साल रहते हैं। मगर उससे बहुत पहले हम इस जमीन पर नहीं रह सकेंगे। कारण यह कि यहाँ पेड़-पौधे और फल-फूल सब सूख चुके होंगे। यहाँ जिन्दगी नहीं रहेगी और हमें रहने को किसी दूसरे नक्षत्र पर जगह मिलेगी अथवा मिल चुकी होगी।’’

‘‘ओह!’’ सालिहा ने पूछा, ‘‘इस किस्म की कुफ्र की बातें तुम नगीना को बताती रहती हो?’’

‘‘अम्मी! मैं अपने मन से नहीं बता रही। बड़े-साईंसदानों की बात ही बता रही हूँ।’’

ये बातें सालिहा के इल्म और अक्ल से बाहर की थीं। इस कारण बात आगे नहीं चल सकी। कमला फिर अखबार पढ़ने लगी।

कमला को वीणा सिखाने वाला मास्टर आ गया और खादिमा चाय ले आई। मास्टर, प्रज्ञा और कमला की अम्मी, कमला तथा प्रज्ञा की सास सैण्टर टेबल के चारों ओर कुर्सियों पर बैठ गए। कमला सबके लिए चाय बनाने लगी।

सालिह के मस्तिष्क पर इस बात का बहुत गहरा प्रभाव हुआ कि कोई काल ऐसा भी आएगा कि इस जमीन पर फल-फूल, साग-भाजी, अन्न-अनाज नहीं रहेंगे और उनको उड़कर किसी दूसरे सियारे पर ले जाया जाएगा।

वह वहाँ कैसे पहुँचेगी? बस, इसी का भय उसके मन में समा रहा था। वह सायंका की चाय पीते हुए और रात के खाने के समय चिंतित मन बैठी रही।

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