उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘भाईजान तीन सौ रुपया महीना देते हैं।’’
‘‘ओह! और यह यहाँ आकर खरीदा है?’’
‘‘हाँ! नौ सौ रुपए की आयी है।’’
‘‘तो तुम्हारे भाईजान इतना कुछ फोकट में खर्च करते हैं?’’
‘‘अपनी बहिन पर खर्च किया हुआ फोकट में होता है क्या?’’
आधा मिनट लगा सालिहा को समझने में और फिर समझकर बोली, ‘‘मैं समझती थी कि वह तुम्हें अपनी बीवी बनाने के लिए यह सब खर्च कर रहा है।’’
‘‘देखो अम्मी! अब इस किस्म की बदतमीजी यहाँ नहीं चलेगी। रात जो सुलूक तुम मुझसे करने जा रही थीं, वह एक माँ के सुलूक से कुछ ज्यादा था। उस समय मैंने हल्ला नहीं किया था। मुझे तुम्हारी बात भाभी और भाईजान को बताते हुई शर्म महसूस हो रही थी।’’
‘‘मगर जब मैं कमरे से बाहर निकली तो अम्मी और भाईजान वहाँ बाहर कुर्सियों पर बैठे मिले। मुझे बहुत शर्म आई थी।’’
‘‘मगर मैं कुछ खराब बात कर रही थी क्या?’’
‘‘हाँ, बिल्कुल नाकिस बात थी।’’
‘‘अच्छा!’’ कमला ने इस विषय को बदल कर कहा, ‘‘अब तुम या तो कुर्सी पर बैठकर सुनो, नहीं तो अपने कमरे में चली जाओ। मैं अपने दिन-भर के काम में लग रही हूँ।’’
सालिहा कुछ देर तक तो कुर्सी पर बैठ सुनती रही, मगर उसकी झनन-झन में उसे रस नहीं आया। अभी कमला अभ्यास ही कर रही थी कि वह उठी और अपने कमरे में चली गई।
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