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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


वह समझ गई कि लड़की उसके कमरे में जा सोई होगी। वह उठ कमरे से निकली तो सेविका सामने से हाथ में ट्रे और उसमें एक प्याला तैयार चाय का लाती हुई मिली। उसने कहा, ‘‘आपके लिए मैं बेड-टी ला रही थी।’’

‘‘मैं अपने कमरे में जा रही हूँ। वहाँ ले आना।’’ सालिहा ने उठते हुए कहा। वह अपने कमरे में गई तो वहाँ पलंग खाली पड़ा था। हाँ पलंग पर किसी के लेटने के लक्षण स्पष्ट दिखाई दे रहे थे।

सालिहा ने घूमकर सेविका से ही पूछा, ‘‘नगीना कहाँ है?’’

‘‘अम्मी! वे सब भाईजान के कमरे में हैं। अपनी नमाज-बन्दगी से अभी-अभी फारिग हुए हैं।’’

‘‘कौन-कौन हैं?’’

‘‘बड़ी अम्मी हैं। भाभीजान और भाईजान के अलावा नगीना बहिन हैं।’’

सालिहा ने और ज्यादा नहीं पूछा। चाय का प्याला उठा पलंग पर बैठ सरुकियाँ लेने लगी। चाय समाप्त हुई तो वह अपने नित्य-कर्म में लग गई।

पूजा तथा चर्चा के बाद सरस्वती तथा कमला अपने-अपने कमरों को चल दीं। कमला ने देखा कि उसके कमरे के दरवाजे खुले हैं। कमरा खाली देख वह हँसने लगी।

अब वह अपने कमरे में जा वीणा बजाने लगी। उसे वीणा बजाते हुए आधा घंटा हुआ था कि सालिहा कमरे में आ गई और पूछने लगी, ‘‘तो तुम यहाँ भी यह बजाती हो?’’

‘‘हाँ अम्मी! यहाँ रोज पाँच बजे एक मास्टर सिखाने आता है।’’

‘‘उसे क्या देती हो?’’

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