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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


अब्दुल हमीद के कान खड़े हो गए। यह उसका धन्धा था। इस कारण वह वकील की बात को समझने के लिए सावधान हो गया।

मुहम्मद असलम ने आगे कहा, ‘‘मेरा एक दोस्त समुद्री जहाज से अफ्रीका, नैरोबी से आया है। उसने आने से पहले अपनी कमीज के बटन और स्टड सोने के खरीद लिये। वहाँ तीन सौ रुपए दस ग्राम का दाम है। इन बटनों में पचास ग्राम सोना लगा हुआ था। इसका उसे डेढ़ हजार रुपया देना पड़ा। यहाँ हिन्दुस्तान में उस पचास ग्राम सोने के दाम बने हैं चार हजार रुपये। मैं समझता हूँ कि थोड़ी-सी अक्लमंदी से कानून को ताक में रख उसने लाभ उठा लिया है।’’

‘‘यही शरअ की बाबत कह रहा हूँ। अगर मुकद्दमा सुप्रीम कोर्ट में चला गया तो यकीनन फैसला नगीनाजी के हक में जायेगा और जो फैसला हो गया, उसको बदलने के लिए कानून, मेरा मतलब है संविधान बदलने की कोशिश करनी पड़ेगी जो बहुत मुश्किल है। तब शायद शरअ रद्द मानी जाएगी। तब सारे मुल्क में बदअमनी भी फैल सकती है।

‘‘अगर आप नगीनाजी से कुछ घर में फैसला कर लें और इसे कुछ ले-देकर राजी कर लें तो शरअ की इज्जत बच सकती है।’’

इसमें ज्ञानस्वरूप ने कुछ नहीं कहा। एक बात वह समझ गया था कि असलम कानून में सुराख जानता है। उन सुराखों को बन्द करने में सरकार की मदद नहीं कर रहा, वरन् उन सुराखों में से चोर-उचक्कों को निकल जाने का ढंग बता रहा है। इस पर भी वह जो कुछ कह रहा था, उससे उसे भी लाभ होने वाला था। इसलिए वह चुप था।

अब्दुल हमीद ने बात को समझते हुए पूछा, ‘‘तो वकील साहब! मैं तस्करी का सोना कैसे स्मगल कर सकता हूँ?’’

‘‘वह तो एक मिसाल थी।’’ असलम ने समझाया, ‘‘कानून की नाक मोड़ी जा सकती है, सुलह सफाई से। मैं अपने एक-दूसरे दोस्त की बात बताता हूँ। एक सरकारी अफसर है। उसकी शादी हो चुकी है और दो लड़के भी हैं। कुछ महीने हुए वह एक पहाड़ी औरत को नौकर बनाकर घर लाया और उसे बीवी बना रखने लगा। मैंने उसे राय दी है, क्या जरूरत है पहली बीवी को तलाक देने की? उसकी बीवी को भी मैंने बताया कि पति के साथ सुलह-सफाई से अपने हक-हकूक महफूज रखने चाहिएँ। तलाक देने पर तो उसकी हैसियत और भी गिर जाएगी।’’

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