उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘मुसलमान अपने आप तो अपने सिविल कानूनों में तबदीली करायेंगे नहीं। मगर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले कानून में संशोधन का काम दे सकते हैं।’’
‘‘तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुसलमानों के शरअ को भी बदल सकता है?’’ अब्दुल हमीद ने पूछा।
‘‘हाँ!’’ ज्ञानस्वरूप ने बताया, ‘‘हमारे वकील का कहना है कि जब तक हमारी संसद उस फैसले को रद्द कर कुछ कानून न बनाये तब तक फैसला कानून की हैसियत रखता है।’’
‘‘तो इससे कैसे बचा जा सकता है?’’ अब्दुल हमीद का प्रश्न था।
‘‘यह आपके वकील साहब बतायेंगे।’’ ज्ञानस्वरूप ने मुहम्मद असलम की ओर संकेत कर दिया।
मुहम्मद असलम ज्ञानस्वरूप द्वारा प्रस्तुत समस्या पर विचार कर रहा था कि यदि सुप्रीम कोर्ट तक बात गई और कोई ऐसा फैसला हो गया कि एक व्यक्ति के मौलिक अधिकार शरअ से ऊपर हैं तो यह मुसलमानों के हक में नहीं होगा। उसने तुरन्त एक सुझाव रख दिया। उसने कहा, ‘‘सही दिमाग मुसलमानों को अपनी मर्जी से बात घर में ही तय कर लेनी चाहिए। हकीकत यह है कि कायदे-कानून और धर्म सोसाइटी के अनपढ़ लोगों के लिए होते हैं। अक्लमन्द तो कानून से दूर रहकर अपने मन की बात करने का रास्ता निकाल लेते हैं।
‘‘देखिए! मैं आपको एक मिसाल से समझाता हूँ। सोना विदेशों में सस्ता है। हमारे मुल्क में सरकार ने इस पर टैक्स लगा इसे बहुत महंगा कर रखा है।’’
‘‘तो जो मूर्ख आदमी हैं, वे बाजार में सोना आठ-नौ सौ रुपये दस ग्राम का खरीदते हैं और अक्लमंद इसे चोरी-चोरी विदेशों से खरीदकर मंगवा लेते हैं।’’
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