उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
अब्दुल हमीद ने कहा, ‘‘इस प्रकार नहीं। मैं कल बम्बई चला जाऊँगा। इसीलिए अपनी अम्मी को भी इस गुफ्तगू में शामिल कर लो तो ठीक है। फैसला उसके साथ ही होना चाहिए। मैं तो उसका एजेण्ट हूँ।’’
‘‘क्यों वकील साहब?’’
असलम ने कहा, ‘‘मैं अपना बस्ता अपने मुँशी को दे दूँ तो आपके साथ चल सकता हूँ।’’
इस तरह अब्दुल हमीद, ज्ञानस्वरूप, कमला और वकील मिस्टर मुहम्मद असलम ज्ञानस्वरूप की मोटर में सवार हो पहले इम्पीरियल होटल में गए, वहाँ से सालिहा बेगम को ले, सब लदे-फदे ग्रेटर कैलास में अरुणाचल लॉज में जा पहुँचे। वहाँ प्रज्ञा और सरस्वती इस भीड़-भाड़ को आया देख भौंचक्क रह गयीं। आखिर सरस्वती ने पूछा, ‘‘क्यों साहब! आज भी पिस्तौल साथ लाए हैं?’’
इस समय सब कोठी के ड्राइंगरूम में जा पहुँच थे। पिस्तौल की बात सुन अब्दुल हमीद हँस पड़ा। उसने पत्नी की ओर देखकर कहा, ‘‘तो तुम्हें पिस्तौल से अभी भी डर लग रहा है।’’
‘‘जब हद से ज्यादा अक्लमंद खाविन्द मिल जाए तो उससे डरते रहना ही चाहिये।’’
कमला ने कहा, ‘‘अब्बाजान! आपने तो हत्या की कोशिश कर ही दी थी। वह तो भैया को वक्त पर सूझ गयी और इन्होंने आपको अपनी बाहों में दबोच लिया। वरना आपने तो हम सब का काम तमाम करने का फैसला कर लिया था।’’
अब्दुल हमीद हँस पड़ा और उसने बात बदल दी, ‘‘यह यासीन कह रहा है कि मुकद्दमे का फैसल होने में तीन साल लग जायेंगे और तब तक नगीना बालिग हो जायेगी और मेरा दावा फिजूल हो जायेगा।’’
‘‘हाँ! यह हमारे वकील ने कहा है। उसका कहना है कि आप इस बात का तो इंजेक्शन ले सकते हैं कि बालिग होने तक शादी न कर सके, मगर जहाँ वह शादी नहीं करना चाहती, वहाँ शादी करने का हुक्म कोई अदालत नहीं दे सकती।’’
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