उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘यह तुम देखो कि तुमको कितनी तकलीफ होगी।’’
‘‘मैं अपनी तकलीफ की बात नहीं कह रहा। मैं तो यह कह रहा हूँ कि सुप्रीमकोर्ट से फैसला लेते हुए तीन साल लग जायेंगे और तब तक कमला बालिग हो जायेगी। आपका मुकद्दमा अप्रभावी हो जायेगा और सब खर्च हुआ पैसा तथा मेहनत बेकार हो जायेगी।’’
‘‘मगर यह तुम्हारे साथ भी तो होगा।’’
‘‘मेरे साथ और आपके साथ, दोनों का खर्च एक ही खानदान में से जायेगा। मैं तो आपके रुपये में और अपने रुपये में फर्क नहीं मानता। इसलिये दोनों के खर्च की ही बात कह रहा हूँ। अभी दो महीने की तारीख पड़ी है। तब आपको बयानों की नकल मिलेगी। उससे अगली तारीख तीन-चार महीने की पड़ेगी। इस तरह इस मामूली-सी बात में ही छः महीने निकल जायेंगे। नगीना के बालिग होने में डेढ़ साल रह जायेगा। अब्बाजान! यकीन जाने कि इस मुकद्दमें में आपका मतलब हल होने वाला नहीं है।’’
अब्दुल हमीद अपने वकील का मुख देखने लगा। वकील ने कहा, ‘‘अगर इस मसलह पर बात करनी है तो मैं समझता हूँ कि आइये, रैस्टोराँ में चलें। वहाँ चाय पीते हुए बात हो सकेगी।’’
कमला ने कह दिया, ‘‘भाईजान! मैं तो घर लौट रही हूँ। मेरे म्यूज़िक मास्टर के आने का वक्त हो गया है।’’
‘‘तो फिर बात कौन करेगा?’’ अब्दुल हमीद ने पूछा।
ज्ञानस्वरूप ने कह दिया, ‘‘अब्बाजान! आइये, आपको भी चाय अपने घर पर ही पिला दूँगा। कमला मेरी मोटर में घर जायेगी। आप भी चल सकते हैं और फिर वहीं बात हो जाएगी।’’
अब्दुल हमीद का वकील मुहम्मद असलम हँस पड़ा। हँसते हुए बोला, ‘‘यासीन साहब! मुझे भी चाय की दावत दें तो मैं भी आपकी बातचीत में हिस्सा ले सकता हूँ।’’
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