उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
|
391 पाठक हैं |
खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
बयान दाखिल करते समय बहन-भाई, दोनों न्यायालय में उपस्थित थे। इस कारण दोनों का अब्बाजान से आमना-सामना हो जाना स्वाभाविक था। अदालत में ही कमला ने हाथ जोड़ उनको सलाम-आलेकुम कह दी। अब्दुल हमीद ने उत्तर देने से बचने के लिए मुख मोड़ा तो उधर ज्ञानस्वरूप खड़ा था। उसने हाथ जोड़ आदाब अर्ज कर दी। अब्दुल हमीद ने कह दिया, ‘‘मैं समझता हूँ कि मुकद्दमा कर मैंने ठीक ही किया है। तुम दोनों को अक्ल आ रही मालूम होती है।’’
‘‘अब्बाजान! मैं भी अक्लमंदों में शामिल हो रही हूँ और आपकी अनायत ही इसमें वजह है।’’ कमला ने कह दिया। अब्दुल हमीद ने जब मुख मोड़ा था तो कमला अब्बाजान की पीठ की तरफ हो गई थी। इस पर ज्ञानस्वरूप ने कहा, ‘‘अब्बाजान! बहिन की सलाम भी कबूल होनी चाहिए।’’
‘‘तो तुम क्या चाहते हो जो दोनों मुझे घेर कर खड़े हो गए हो?’’
‘‘यह तो आप बताइये कि आप क्या चाहते हैं? मुकदमा आपने किया है। हम तो मुद्दालय हैं।’’ ज्ञानस्वरूप ने कहा।
‘‘मैं कुछ नहीं चाहता। यह तो नगीना की माँ चाहती है। वह मैं कर रहा हूँ।’’
‘‘पर अब्बाजान! जब बयान वकील दर्ज कर रहा था, तब आपके पास बैठा एक व्यक्ति आपसे कुछ पूछ रहा था?’’
‘‘हाँ! उसका क्या है?’’
‘‘वह यहाँ के एक रोजाना अखबार का नुमाइन्दा है। जो कुछ आपने कहा है, वह कल अखबार में छप जायेगा और आपके खानदान का नाम रोशन हो जायेगा। यह बात मुल्क-भर मैं फैल जायेगी कि बम्बई के एक बहुत बड़े खोजा ने अपनी लड़की पर दावा किया है क्योंकि वह लड़की बाप से तजवीज़ शुदा लड़के से शादी नहीं करना चाहती थी।’’
‘‘तो क्या किया जाये?’’
‘‘अब्बाजान! इसमें कानून की एक खास, लेकिन बेतुकी बात है। उसके लिए सुप्रीमकोर्ट तक जाना पड़ेगा। वह यहाँ के छोटे हाकिम तय नहीं कर सकेंगे।’’
|