उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘देखिए श्रीमान्!’’ अब महादेवी ने कहा, ‘कहते हैं कि पंडित जवाहरलाल एक साधारण विद्यार्थी, असफल वकील और असंतुलित मन वाले, चरित्र के शिथिल और बहुत ही मोटी बुद्धि रखने वाले थे। इस पर भी वह पूरे सत्रह वर्ष तक भारत-जैसे विशल देश के प्रधानमंत्री बने रहे। यह किसी पूर्वजन्म में किये अच्छे कर्म का फल ही हो सकता है। इस जन्म में तो उन्होंने इस पद के लिए कुछ नहीं किया था।’’
‘‘उसने,’’ रविशंकर ने कह दिया, ‘‘दस बार देश के लिए जेल भोगी है।’’
‘‘परन्तु सावरकर सो साठ वर्ष की कैद का दण्ड मिला था। यदि जेल जाने से प्रधानमंत्री बनता है तो सावरकर को प्रधानमंत्री बनाना चाहिए था। सावरकर, कालेज की पढ़ाई में भी जवाहरलाल से श्रेष्ठ था, परन्तु प्रधानमंत्री बना जवाहरलाल और सावरकर सामान्य व्यक्ति की भाँति ही मरा है। बताइये, यह क्यों हुआ है?’’
‘‘लोगों ने जवाहरलाल को पसन्द किया तो वह नेता बना गया।’’
‘‘यही तो पूछ रहा हूँ कि लोगों ने और फिर महात्मा गांधी जैसे नेताओं ने जवाहरलाल को क्यों पसंद किया? योग्यता में तो सावरकर अधिक था।’’
रविशंकर हँस पड़ा। उसने हँसते हुए कहा, ‘‘यह तो लोगों से पता करना चाहिए कि वह उन्हें क्यों पसन्द करते थे?’’
‘‘मैं बताता हूँ।’’ शिवशंकर ने कह दिया, ‘‘इस देश में अंग्रेजों ने दो सौ वर्ष तक राज्य किया है। इन दो सौ वर्षों में वे अंग्रेजी पढ़े-लिखों को मान-प्रतिष्ठा देते रहे हैं। अंग्रेजी पढ़ों को नौकरियाँ देते रहे हैं।’’
‘‘परिणाम यह हुआ है कि पूर्ण जाति अंग्रेजी पढ़े-लिखों की दास हो गई है।’’
‘‘जवाहरलाल पूर्वजन्म के अच्छे अथवा बुरे कर्मों के कारण एक ऐसे व्यक्ति के घर में पैदा हो गए, जिससे उनको शिशुकाल से ही अंग्रेजी में बातचीत करने वाली दाइयाँ मिल गयीं।’’
‘‘इस कारण जवाहरलाल अच्छी अंग्रेजी बोलने वाले बन गए और सावरकर एक महाराष्ट्रियन परिवार में पैदा हुए जो मराठी बोलते-लिखते तथा पढ़ते थे। वह अंग्रेजी भाषा को हटाना चाहते थे। यह भी पूर्वजन्म के कर्म का फल ही था।’’
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