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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘‘भगवद्गीता में कहा है कि जो-जो भक्ति, जिस-जिस देवता की भक्ति करता है, वह उस-उस देवता को पा जाता है और वह देवता उस पर कृपा कर उसे अपने पूर्ण रहस्य बता देता है। बस, यही मेरे साथ हुआ है।’’

‘‘क्या हुआ है पिताजी?’’

‘‘एक बार की बात बताता हूँ। मैं उन दिनों विधि-मंत्रालय में अण्डर-सेक्रेटरी था। विधिमंत्री ने कुछ भूल कर दी थी और लोकसभा में उस पर भारी नुक्ता-चीनी हो रही थी। मंत्री महोदय बहुत परेशान थे। उन्होंने सेक्रेटरी को बुलाया। सेक्रेटरी छुट्टी पर था। उसके स्थान पर मैं गया तो उन्होंने कहा, ‘‘यह वक्तव्य बिल्कुल गलत है। अब लोकसभा में उस वक्तव्य पर मेरी वह हँसी उड़ाई गई है कि मेरा सिर से पाँव तक पसीना छूट रहा है।’’

‘‘प्रधानमंत्री ने आज मुझे शाम की चाय पर बुलाया है। मैं समझता हूँ कि वह मुझे मंत्री पद से त्याग-पत्र देने के लिए कहने वाले हैं।’’

‘‘मैंने उसी समय हनुमानजी का चिन्तन किया और कह दिया, ‘‘श्रीमान्! आपको अपनी भूल स्वीकार कर लेनी चाहिए और कह देना चाहिए, ‘टू अर इज ह्यूमन।’ साथ ही कह दीजिए कि आप कल लोकसभा में एक वक्तव्य देंगे और मैं आपको वह वक्तव्य बनाकर कल प्रताःकाल दे दूँगा। विश्वास रखिए, सब ठीक होगा।’’

‘‘मंत्री महोदय बोले कि तुम वह वक्तव्य पहले दिखाओ, मैं पीछे प्रधानमंत्री को यह कहूँगा।’’

‘‘मैंने महावीरजी को स्मरण किया और एक वक्तव्य लिख दिया। वह मंत्री महोदय को दिखाया और वह उस वक्तव्य को लेकर प्रधानमंत्री से मिलने चले गए।’’

‘‘महावीरजी की कृपा से वह वक्तव्य प्रधानमंत्री ने स्वीकार कर लिया और जब अगले दिन लोकसभा में वह पढ़कर सुनाया गया तो पूरा सदन तालियों से गूँज उठा।’’

‘‘मेरे वक्तव्य का आशय था–‘भूल तो सब करते हैं। सदन का कोई सदस्य यह दावे से नहीं कह सकता कि उससे कभी भूल नहीं हुई। मुझसे भी हुई है। मैं सदन से क्षमा चाहता हूँ।’’

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