उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘बस हम चले आये हैं।’’
‘‘परन्तु डाक्टर साहब! हमारे घर में उसी दिन एक अन्य दुर्घटना; जो इससे भी अधिक गम्भीर है, घटी थी। मेरे अब्बाजान मेरी इस बहिन को अपने घर ले जाने के लिए आये थे। वह इसका विवाह वहाँ करना चाहते हैं जहाँ यह नहीं चाहती। इस कारण इसने अब्बाजान के साथ जाने से इनकार कर दिया। इस पर अब्बाजान ने पिस्तौल निकाल लड़की की हत्या कर देने का यत्न किया। मुझे समय पर समझ आ गया कि अब्बाजान क्या कर रहे हैं। मैंने उनको अपनी बाहों में दबोच लिया और लड़की बच गई। पुलिस आयी, परन्तु अब्बाजान ने कुछ ले-देकर अपनी जान बचायी।’’
‘‘परन्तु अगले ही दिन उन्होंने मेरे और अपनी लड़की के वारण्ट निकलवा दिये। उनका कहना था कि मैं अपनी बहिन का किसी हिन्दू से किसी अपने लाभ के लिए विवाह कराना चाहता हूँ और उसे जबरदस्ती अपने घर पर रख रहा हूँ।’’
‘‘वह थानेदार, जिसने अब्बाजान से कुछ ले-देकर उनको छोड़ दिया था, मेरे पास आकर बता गया कि हमारे वारण्ट आने वाले हैं।’’
‘‘मैंने मजिस्ट्रेट के सामने हाज़िर होकर अपनी और अपनी बहिन की जमानत हाज़िर कर दी है। अब हमें उनके दावे का उत्तर इस वीरवार को देना है।’’
विष्णुसहाय हँस पड़ा और बोला, ‘‘इसे ही तो मैं परमात्मा के अस्तित्व को न मानना कहता हूँ। मुझे कुछ ऐसा समझ आ रहा है कि रविशंकर जैसे मन्दिर में जाने वाले और आपके अब्बाजान जैसे मस्जिद में नमाज पढ़ने वाले एक ही श्रेणी के व्यक्ति हैं।’’
‘‘दोनों मज़हबी हैं और नाशवान देवताओं की पूजा करने वाले हैं और दोनों ही खुदा से ‘मुन्किर’ हैं। इस कारण दोनों ही नास्तिक हैं।’’
सब गम्भीर हो शिव के पिता का मुख देखने लगे।
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