लोगों की राय

उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

391 पाठक हैं

खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘‘डाक्टर साहब!’’ प्रज्ञा ने कहा, ‘‘यह इण्डो-यूरोपियन भाषा वैदिक भाषा ही थी। वेद भाषा से ही यूरोप की और भारत की सब भाषायें निकली हैं।’’

‘‘तो इससे क्या सिद्ध हुआ जो तुम सब ने नाम बदल लिए हैं?’’ रविशंकर का प्रश्न था।

‘‘नहीं, मैंने यह नहीं किया। इस ज्ञानस्वरूप नाम के निर्माण में मेरा हाथ नहीं है। ज्ञान और स्वरूप के शब्द तथा इनके लिखने के ढंग में कुछ आकर्षण है। मैंने तो इतना ही किया है कि जो ईजाद किया जा चुका था उसमें से अनुकूल को ग्रहण कर लिया है।’’

अब पुनः विष्णुसहाय ने बात का सूत्र हाथ में लेकर कहा, ‘‘आप तो बहुत अच्छी हिन्दी बोलते हैं और रविशंकर जी कह रहे हैं कि आप मुसलमान की सन्तान हैं।’’

‘‘हिन्दी भाषा, मैंने बताया है न कि बी.ए. में ली थी। इस पर भी बोलने में इसका अभ्यास नहीं था। अब पिछले आठ महीने से विवाहित जीवन में मुझे अभ्यास हो गया है। मेरी श्रीमती संस्कृत में भी एम.ए. हैं।’’

‘‘और,’’ विष्णुसहाय ने पुनः पूछा, ‘‘आप इस बात से सुख अनुभव करते हैं?’’

‘‘जी! केवल यह नहीं मेरी माँ सरवरजी ने भी अपना नाम सरस्वती मंजूर कर लिया है। और मेरी बहिन जो पहले नगीना थी, अब अपने को कमला कही जाने से प्रसन्न होती है।’’

‘‘तो रविशंकर जी!’’ विष्णुसहाय का कहना था, ‘‘आपको इसमें क्या खराबी मालूम होती है? मियाँ-बीवी राज़ी तो क्या करेगा काजी? साथ ही मुझे इन साहब की विचार-दिशा में कुछ भी दोष प्रतीत नहीं होता।’’

‘‘मगर मजहब का प्रश्न तो है ही?’’ रविशंकर ने कह दिया।

‘‘वह क्या होता है?’’ विष्णुसहाय का प्रश्न था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book