उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘कौन हैं वह?’’
‘‘एक डाक्टर विष्णुसहाय हैं। सन् १९६९ में वह विश्वविद्यालय से सेवामुक्त हुए थे। मेरे साथ हनुमानजी के मन्दिर जाया करते हैं।’’
उमाशंकर ने बात सुगमता से बनती देख कह दिया–‘‘उनके घर पर टेलीफोन है?’’
‘‘हाँ! उनका लड़का सचिवालय में सैक्रेटरी है। उसके नाम पर टेलीफोन है। नाम है रामसहाय, असिस्टैण्ड सैक्रेटरी विधि मंत्रालय।’’
उमाशंकर उठा और बाहर ड्राइंगरूम में आ गया। उसने टेलीफोन डायरेक्ट्री में नम्बर देख डाक्टर विष्णुसहाय को मध्याह्न के भोजन का निमन्त्रण दे दिया।
जब उमाशंकर टेलीफोन कर कमरे में आया तो पिता ने पूछा, ‘‘डाक्टर साहब मिले?’’
‘‘हाँ! वह स्वयं बोल रहे थे। जब मैंने आपका नाम लेकर निमंत्रण दिया तो बिना विचार किये बोले कि वह आवेंगे। यद्यपि उनका घर बहुत दूर है, इस पर भी वह आयेंगे।’’
‘‘अब ठीक है।’’ रविशंकर ने कह दिया, ‘‘विष्णुसहाय पर्चा बनायेंगे और स्वयं ही नम्बर देंगे।’’ रविशंकर ने पत्नी से पूछ लिया, ‘‘बताओ जी, अब ठीक है।’’
‘‘हाँ! ठीक तो है। मगर मैं समझती हूँ कि विष्णुसहाय केवल ‘हाईकोर्ट ही हैं। उनसे आगे एक सुप्रीम कोर्ट भी है।’’
‘‘वह कहाँ है?’’
‘‘यह तब बताऊँगी, जब हाईकोर्ट ने उलटा-पुलटा फैसला दिया।’’
सब हँसने लगे।
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