उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
इस पर महादेवी ने पुनः बातों में हस्तक्षेप करते हुए कहा, ‘‘यही पूछने के लिए तो उसे बुलाया है।’’
‘‘बुलाया तो उमा ने है उस लड़की से सम्बन्ध बनाने के लिए। उन्होंने नाम बदले थे, हमें दोखा देने के लिए।’’
‘‘यह सब आपकी कल्पनामात्र भी हो सकती है। मैं इसकी सचाई जानना चाहती हूँ। आप हिन्दू किसको समझते हैं, यह बता दीजिए। तब मैं देखूँगी कि आपके मापदण्ड से वे हिन्दू हैं या क्या हैं?’’
‘‘अच्छा, ऐसा करो! मैं नहीं जाऊँगा। मगर तुम ही उसकी परीक्षा लेना। मैं तुम्हारी परीक्षा पर उसे नम्बर दूँगा।’’
शिवशंकर हँस पड़ा और बोला–‘‘यह ठीक है। पर्चा माताजी सेट करेंगी। उत्तर प्रज्ञा दीदी देंगी और उत्तर-पत्र देख नम्बर पिताजी देंगे।’’
‘‘तो यह ठीक नहीं क्या?’’
‘‘बिल्कुल नहीं।’’ शिव का कहना था, ‘‘आप स्वयं बी.ए. पास, वह भी आज से पैंतीस वर्ष पहले के, एक डब्बल एम.ए. की परीक्षा लेंगे। पर्चा बनायेंगी माताजी जो दसवीं जमायत तक पढ़ी हैं। पिताजी! यह तो सब मजाक हो जायेगा।’’
‘‘तो कौन परीक्षा ले सकता है।’’
‘‘मैं समझता हूँ, कोई भी हमारे घर में नहीं जो प्रज्ञा दीदी की परीक्षा ले सके। हमें तो जो वह कहे मान लेना चाहिए।’’
‘‘इस पर भी प्रारम्भिक प्रश्न तो मैं पूछ ही सकता हूँ?’’
‘‘आपके पूछने पर मैं आपत्ति नहीं कर रहा। आप उससे पूछिए और फिर वह जो कुछ कहे, उसे सत्य मान स्वीकार कर लीजिए।’’
‘‘हाँ, कहीं धोखाधड़ी मालूम हो तो उसको पकड़ कर ‘ऐक्सपोज़’ करिये।’’
कुछ विचार कर रविशंकर बोला—‘‘मेरा एक मित्र है। वह रिटायर्ड प्राध्यापक है। उसे बुला उससे परीक्षा करा लें तो कैसा रहे?’’
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