लोगों की राय

उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

391 पाठक हैं

खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘‘क्यों? मुसलमान में क्या दोष है?’’

उमाशंकर समझ रहा था कि बुद्धि से और स्वभाव से काम करने में कितना अन्तर है। इस पर भी उसने बातों का सूत्र पकड़े हुए कहा, ‘‘वह मुसलमान जिससे उसके अब्बाजान उसकी शादी करना चाहते हैं, कोई प्रत्यक्ष कार्य नहीं करता। वह कट्टर पंजाबी है। तीसरे, वह शरअ से शादी करना चाहता है। चौथे, वह बदसूरत है और पाँचवाँ, वह पढ़ा-लिखा नहीं।’’

‘‘अपने अब्बाजान का चुनाव उसे पसन्द नहीं। इस कारण अब्बाजान के घर जाकर वह रहना नहीं चाहती।’’

‘‘यह सब बात उसने लिखाई है या तुम्हारे मस्तिष्क की उपज है?’’

‘‘पिताजी! मालूम होता है कि प्रज्ञा की समझाई हुई है।’’

‘‘मगर वह नाबालिग है। उसे अपने अब्बाजान का कहा मानना चाहिये था।’’

‘‘वकील का कहना है कि वह अपनी मर्जी से बालिग होने तक शादी नहीं कर सकती। मगर अपने बालदैन से की जाने वाली शादी पर प्रतिबन्ध लगवा सकती है।’’

‘‘उस दिन थानेदार को एक हजार रुपये देकर अब्दुल हमीद छूटे थे, नहीं तो कत्ल करने की कोशिश के जुर्म में वह हवालात में होते। इसीलिये थानेदार नाराज़ है और वह ज्ञानस्वरूप की मदद करा रहा है।’’

‘वकील को क्या फीस दी है?’’

‘‘अभी प्रारम्भिक कार्यवाही के लिए एक हजार दिया है।’’

‘‘और यह धन कौन खर्च कर रहा है?’’

‘‘प्रज्ञा कर रही है और प्रज्ञा मैं प्रज्ञा की सहायता कर रहा हूँ।’’

‘‘क्या सहायता कर रहे हो?’’

‘‘दो दिन की भाग-दौड़ और फिर मोटर में कमला को अदालत में ले जाना और जमानत वगैरह का प्रबन्ध करना।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book