उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘ओह! तो नौबत यहाँ तक पहुँच गयी है?’’
‘‘हाँ, पिताजी!’’ अब उमाशंकर ने माँ की बात का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘इसके अतिरिक्त एक अन्य भी बात है। आपकी होने वाली बहू पर उसके बाप ने दावा दर दिया है।’’
‘‘किसने बताया है?’’
‘‘मुझे उसका फोन आया था और मैं एक वकील को उसे डिफैण्ड करने के लिय कह आया हूँ।’’
‘‘क्या दावा किया है?’’
अब सब बैठ गये। उमाशंकर ने कहा, ‘‘जिस रात कमला और प्रज्ञा इत्यादि हमारे यहाँ खाना खाया था, उससे अगले दिन उसके वारेण्ट की पूर्व सूचना थानेदार ने दी थी। कमला स्वयं भाई के घर से निकल किसी अन्य स्थान पर छिप गयी थी।
‘‘उसने मुझे टेलीफोन पर बताया तो मैंने अपने एक सहपाठी केशवदेव एडवोकेट को कमला की ओर से वकालतनामा दिलाकर कमला की जमानत करा दी है। अब वह फिर भाई के घर में आ गयी है और मुकद्दमे की तारीख आगामी वीरवार है।’’
‘‘कमला के पिता दिल्ली के इम्पीरियल होटल में ठहरे हुए हैं और पेशी की प्रतीक्षा कर रहे हैं।’’
‘‘परन्तु यह सब क्यों किया गया है?’’
‘‘इस कारण कि कमला के अब्बाजान उसका विवाह किसी मुसलमान से करना चाहते हैं।’’
‘‘वह ठीक तो है।’’
‘‘मगर कमला कह रही है कि वह अब हिन्दू हो गयी है और वह किसी मुसलमान से शादी नहीं करना चाहती।’’
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