उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
सायंकाल वह हवाई जहाज में स्थान कैन्सिल कर कोठी पर आयी तो तेजकृष्ण के कुछ मित्र जर्नलिस्ट कोठी में चाय-पानी के लिये एकत्रित हो रहे थे। वह कोठी के ड्राइंगरूम में आती-आती रुक गयी। वहां तेजकृष्ण के पास बहुत से लोग बैठे चाय ले रहे थे।
वह द्वार पर से ही लौट जाने वाली थी कि तेजकृष्ण, मित्रों में से उठकर उसके पास आया और बोला, ‘‘मैत्रेयीजी! मेरे कुछ मित्र आपसे आपके शोध-कार्य के विषय में परिचय प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं। यदि आपत्ति न हो तो आप भी हमारे साथ चाय ले सकती हैं।’’
मैत्रेयी को यह पब्लिसिटी ठीक ही प्रतीत हुई। यद्यपि यह अवसर उपाधि मिलने के उपरान्त अधिक शोभा युक्त होता, परन्तु जो कुछ भी है, उससे लाभ उठाना ठीक समझ, वह तेजकृष्ण के साथ भीतर आ गयी। उसका परिचय तेजकृष्ण ने अपने मित्रों से करा दिया। तेजकृष्ण ने कहा, ‘‘यह है कुमारी मैत्रेयी! इस समय ऑक्सफोर्ड विश्व-विद्यालय में ‘रिसर्च’ कर रही हैं।’’
‘‘आपकी ‘रिसर्च’ का विषय है ब्राह्मण-ग्रन्थ ईसा सम्वत् से ढाई-तीन सहस्त्र वर्ष पहले के लिखे हुए हैं और वेद उनसे भी पहले के हैं।’’
‘‘इनके शोध-प्रबन्ध में तिथि-काल गौण विषय है। यद्यपि यह भी एक महत्त्व का विषय है, परन्तु मुख्य विषय तो यह है कि ब्राह्मण ग्रन्थ और वेदों में अन्तर है तो क्या है?’’
‘‘मैं समझता हूं कि यदि आप लोग रुचि प्रकट करेंगे तो यह इस विषय पर प्रकाश डालेंगी।’’
इतना कह तेजकृष्ण ने अन्य मित्रों का परिचय भी करा दिया। प्रायः सबके सब भारत के विख्यात समाचार-पत्रों और समाचार ‘एजेंसियों’ के प्रतिनिधि ही थे।
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