उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
परिचय हो जाने के उपरान्त पाकिस्तान के एक समाचार-पत्र ‘डॉन’ के दिल्ली में प्रतिनिधि मिस्टर यूसुफ अली ने कहा, ‘‘हम लोग दिनरात राजनीतिक बातें ही करते रहते हैं। इस कारण राजनीति के बाहर भी कोई दुनियां है, हम नहीं जानते। श्री बागड़िया ने हमें बताया है कि राजनीति के अतिरिक्त विषय पर वार्तालाप नित्य के खाने में चटनी का काम करेगा। इस कारण हम आपके ‘रिसर्च’ कार्य के विषय में सरल भाषा में परिचय प्राप्त कर अति प्रसन्न होंगे।’’
मैत्रेयी ने कहा, ‘‘मैं यत्न करूंगी कि सामान्य भाषा में ही बात करूं जिससे कि आप मेरे कार्य के उद्देश्य को सुगमता से समझ सकें।’’ मैंत्रेयी वह अंग्रेज़ी भाषा में कह रही थी। इस कारण सब दत्त चित्त हो सुन रहे थे। उसने कहना आरम्भ किया–
‘‘एक सरल सी बात है कि दुनियाँ हमारे पैदा होने से पहले भी थी और इसी प्रकार हमारे पूर्वज भी यह जानते थे कि यह उनके पैदा होने से पहले से चली आ रही थी।’’
‘‘इस पर भी इसकी शुरुआत कभी तो हुई थी। इस कारण यह हमारी दिलचस्पी का विषय है कि हम जाने कि कब से यह सिलसिला चल रहा है और फिर इसकी शुरुआत कैसे हुई है?’’
‘‘इसमें दो विचार के लोग आजकल मुख्य हैं। एक वे हैं जो यह समझते हैं कि सृष्टि रचना बहुत ही छोटे-छोटे जन्तुओं, जिनको अमीबा की भाँति का कहा जाता है, से आरम्भ हुई। एक दूसरा विचार है जो यह मानता है कि सब जन्तु-जातियाँ ऐसे ही पैदा हुई है, जैसी आज हैं। यह प्राचीन विचार है। आधुनिक विज्ञान प्रथम विचार का समर्थन करता है।’’
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