उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
उसने चण्डीगढ़ विश्व-विद्यालय से संस्कृत में एम० ए० किया था और भारत सरकार से छात्रवृत्ति मिलने पर वह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में शोध-कार्य करने चली गयी थी। वहां दो वर्ष से वह कार्य कर रही थी।
उसके शोध-कार्य में गाईड मिस्टर विलियम साइमन एम० ए०, पी-एच० डी०,-लिट्. मैत्रेयी के शोध-प्रबन्ध की ‘आऊट लाईन्स’ देखकर घबराया था। विश्व-विद्यालय के ‘इण्डौलोजी’ विभाग में पूर्व के काम करने वालों द्वारा प्रतीत किये परिणामों से मैत्रेयी कुछ विपरीत परिणाम निकालने वाली प्रतीत होती थी, इस पर भी वह मैत्रेयी से वह आश्वासन लेकर गाईड बनने के लिए तैयार हुआ था कि प्रमाण और युक्ति से वह उसका समाधान कर सकेगी।
मैत्रेयी ने कहा था, ‘‘मैंने एक विचार सामान्य अध्ययन से बनाया है। शोध-कार्य से उसकी परीक्षा अथवा उससे किसी नवीन विचार तक पहुंचने का ही तो उद्देश्य होता है। मैं कार्य करूंगी। आप पथ-प्रदर्शन करेंगे और हम दोनों देखेंगे कि हम किस परिणाम पर पहुंचते हैं। इसके अतिरिक्त शोध-प्रबन्ध के निरीक्षणों की कौंसिल भी तो बैठेगी। यदि आप सबको मेरे निष्कर्ष युक्ति और प्रमाण से अविरुद्ध प्रतीत होंगे तो आप मुझे यह उपाधि न देने की सिफारिश भी कर सकते हैं।’’
यह व्यवहार शोध-कार्य करने वाले की मानसिक अवस्था की निष्पक्षता प्रकट करता था। इस कारण साइमन तैयार हो गया। धीरे-धीरे, ज्यों-ज्यों कार्य प्रगति करता गया, साइमन मैत्रेयी के विचारों के अनुकूल होता गया और अब पूर्ण प्रबन्ध तैयार हो जाने पर वह उस पर अपनी टिप्पणी लिखने वाला था।
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