उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
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मैत्रेयी ने यशोदा के कहने पर अपना हवाई जहाज का टिकट वापस कर दिया और अपना इंग्लैंड लौटना एक सप्ताह के लिये स्थगित कर दिया। यह निश्चय हुआ कि तीनों यात्री इकट्ठे ही भारत से रवाना हों।
यशोदा अपनी लड़की शकुन्तला की दिल्ली में प्रतीक्षा कर रही थी। शकुन्तला का विवाह कलकत्ता के एक व्यापारी से हो चुका था। उसकी एक सन्तान भी हो चुकी थी।
मैत्रेयी अपना शोध-कार्य लगभग समाप्त कर चुकी थी और वह शोध निबन्ध लिखकर अपने गाईड के निरीक्षण के लिये दे आयी थी। इस कारण उसे जाने की कुछ अधिक जल्दी नहीं थी। यशोदा के कहने से वह रुक गयी।
तेजकृष्ण और उसकी माता से मैत्रेयी को बहुत सहायता और सुविधा मिली थी। यदि हवाई जहाज में तेजकृष्ण से भेंट न होती तो वह किसी होटल में ठहरती। व्यय भी बहुत होता और माँ के देहान्त हो जाने पर कौन उसकी इस सब कार्य में सहायता करता, वह समझ नहीं सकी थी।
साथ ही यशोदा ने वार्तालाप में एक-दो बार यह संकेत किया था कि तेजकृष्ण उसके विषय में आकर्षण अनुभव कर रहा है। वह भी इस समय चौबीस वर्ष की युवती हो चुकी थी और समझ रही थी कि कहीं तो विवाह करना ही है। यदि तेजकृष्ण से हो जाये तो कुछ बुरा नहीं है।
परन्तु एक हिन्दुस्तानी ब्राह्मण कन्या होने के कारण वह अंग्रेज़ लड़कियों की भांति युवकों को उकसा कर विवाह का प्रस्ताव कराने की विद्या नहीं जानती थी। इस कारण वह समझ रही थी कि यदि प्रस्ताव स्पष्ट शब्दों में हो जाये तो वह अपने भावी जीवन का कार्यक्रम बनाने का यत्न करेगी।
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