उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
उसने पूछ लिया, ‘‘यह लड़की कहां से पा गए हो तेज?’’
‘‘माँ! हवाई जहाज में ही परिचय हुआ है। मैं अपने राजनीतिक विचार बताने लगा तो यह मुझे मूर्ख कहने लगी थी। गाँधी और जवाहरजी की भक्तिनी प्रतीत होती है।’’
‘‘इस पर भी कहती थी कि वह ऑक्सफोर्ड विश्व विद्यालय में शोधकार्य कर रही है। इससे मैं यह समझी हूं कि बुद्धिशील तो अवश्य ही होगी।’’
‘‘हां, होनी तो चाहिये। परन्तु माँ, इसकी बुद्धि विशेषज्ञों की भाँति अपने विषय में ही सीमित है। विषय से बाहर तो इसके लिए गुड़-खल एक भाव वाली बात है। मैं भी, राजनीति इसकी बुद्धि से बाहर की बात समझ, कल से उस पर वार्त्तालाप करने से बचता रहा हूं।’’
यशोदा मुस्करायी और बोली, ‘‘मेरा विचार है कि सतर्क बुद्धि रखने वाले के लिए दूसरे विषय के द्वार खोल देने पर्याप्त होते हैं। वह स्वयं अन्य विषयो में विचरने लगता है और यदि हमारा पक्ष बुद्धि गम्य हुआ तो वह किसी भी बुद्धिशील व्यक्ति का पक्ष हो जायेगा।’’
इस पर तेजकृष्ण ने बताया, ‘‘मुझे दिल्ली, लाहौर, कराची, रावलपिण्डी और पीकिंग में भारत, चीन और पाकिस्तान के परस्पर सम्बन्धों के विषय में रिपोर्टिग करने के लिए भेजा गया है। इससे इधर-उधर भाग-दौड़ करनी पड़ेगी। मैंने अपना काम दिल्ली से ही आरम्भ करने का विचार किया है।’’
‘‘ठीक है। कितने दिन दिल्ली में लग जायेंगे?’’
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