उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘नहीं।’’
‘‘तब तो आपको बहुत कष्ट होगा। मुझे तो न जाने कितनी बार दिन में हस्पताल आना-जाना पड़ेगा।’’
‘‘सब प्रबन्ध हो जायेगा। पहले हस्पताल से समाचार ले लो। कहीं तुम्हें उनके पास ही न रहना पड़े।’’
मैत्रेयी समझ गयी। सत्य ही मैत्रेयी की माता सरस्वती की दशा शोचनीय थी। उसके पूर्ण शरीर पर शोध आ चुकी थी। डाक्टरों का कहना था कि उसके वृक्क काम नहीं कर रहे।
यशोदा गाड़ी में बाहर रही थी और तेजकृष्ण मैत्रेयी के साथ हस्पताल में मैत्रेयी को माँ के पास ले गया था। माँ जनरल वार्ड में थी और इस समय बहुत कष्ट में थी।
मैत्रेयी ने तेजकृष्ण की ओर देखकर कहा, ‘‘आप इस समय तो मुझे यहीं छोड़ जाइये और यदि हो सके तो सायंकाल आकर अपने मकान पर ले जाइयेगा।’’
तेज ने वार्ड नम्बर देख लिया और कहा, ‘‘ठीक है। आप यहां ठहरिये। सांयकाल की चाय यहां कैन्टीन में ले लीजियेगा। रात के भोजन के समय से पहले मैं अथवा माता जी आयेंगी और आपकी सुविधानुसार प्रबन्ध कर जायेंगी। यदि आप कहें तो माताजी के लिए प्राईवेट वार्ड में स्थान वनवाने का यत्न करूँ?’’
‘‘यह आप जब सायंकाल आयेंगे तो विचार कर लेंगे।’’
तेजकृष्ण ने मैत्रेयी को वहां छोड़ बाहर माँ के पास आकर सारी स्थिति बता दी। लड़के के मनोभावों को जानने के लिए माँ ने मैत्रेयी के गुणानुवाद करना आरम्भ कर दिया।
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