परिवर्तन >> बिखरे मोती बिखरे मोतीसुभद्रा कुमारी चौहान
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सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समय यत्र तत्र लिखी गई कहानियाँ
सास के आने पर सोना के ऊपर फिर से पहरा बैठ गया। किन्तु वह तो गाँव की लड़की थी, साफ़ हवा में विचर चुकी थी; उसके लिए सख्त पर्दे में बिल्कुल बन्द होकर रहना बड़ा कठिन था। इसलिए उसका जीवन बड़ा दुखी था। उससे घर के भीतर बैठा ही न जाता था। ज़रा मौका पाते ही बाहर साफ़ हवा में जाने के लिए उसका जी मचल उठता और वह अपने आपको रोक न सकती। विश्वमोहन ने एकान्त में उसे कई बार समझाया कि सोना इस आचरण से उनकी बहुत बदनामी हो रही है इसलिए वह खिड़की-दरवाजों के पास न जाया करे, बाहर न निकला करे। एक दो-दिन तक तो सोना को उनकी बातें याद रहतीं। किन्तु वह भूल जाती और वही हाल फिर हो जाता, फिर खिड़की-दरवाजों के पास जाती, फिर बाहर की साफ हवा में आने के लिए प्रकृति के सुन्दर दृश्यों को देखने के लिए उसकी आँखें मचल उठतीं।
एक दिन विश्वमोहन को किसी काम से शहर के बाहर जाना था। सोना ने पति का सामान ठीक कर उन्हें स्टेशन रवाना किया। सास खाना खा चुकने के बाद लेट गयी। सोना ने अपनी गृहस्थी के काम-धंधे समाप्त करके कंघी-चोटी की, कपड़े बदले, पान बना के खाया, फिर एक पुस्तक लेकर पढ़ने के लिए खाट पर लेट गयी। पुस्तक कई बार की पढ़ी हुई थी। दो-चार पेज उलट-पुलट कर देखे, जी न लगा। उसी समय ठेलेवाले ने आवाज दी ‘दो पैसा, हर माल मिलेगा दो पैसा।’ किताब फेंककर सोना दरवाज़े की तरफ़ दौड़ी। ठेले वाला दूर निकल गया था। दूर तक नज़र दौड़ाई। कहीं भी न देख पड़ा। निराश होकर लौटने वाली ही थी कि पड़ोस में ही रहने वाला बनिये का लड़का फैजू दौड़ा हुआ आया, बोला—भौजी। सुई-तागा हो तो ज़रा मेरे कुर्ते में बटन टाँक दो, मैं कुश्ती देखने जाता हूँ।
सोना ने पूछा—कुश्ती देखने जाते हो कि लड़ने?
फैजू ने मुस्करा कर कहा—दोनों काम करने भौजी! पर, पहिले बटनें तो टाँक दो, नहीं तो देर हो जायगी।
सोना सुई-धागा लाकर बटन टाँकने लगी। फैजू वहीं फर्श पर सोना से जरा दूर हटकर बैठ गया। गाड़ी दो तीन घंटे लेट थी। विश्वमोहन ने सोचा, यहाँ बैठे-बैठे क्या करेंगे? चलें तब तक घर में बैठकर आराम करेंगे। सामान स्टेशन पर ही छोड़कर, स्टेशन मास्टर की साइकिल लेकर विश्वमोहन घर पहुँचे। बैठक में फैजू को सोना के पास बैठा देखकर उनके बदन में आग सी लग गयी। वे क्षण भर वहीं खड़े रहे परन्तु इस दृश्य को गवारा न कर सके। अपने गुस्से को चुपचाप पीकर अन्दर आये, माता के पास बैठ गये। सोना से पति की नाराजगी छिपी न रही। ज्यों-त्यों किसी प्रकार बटन टाँककर कुरता फैजू को देकर वह अन्दर आयी। सोना ने स्वप्न में भी न सोचा था कि यह ज़रा सी बात यहाँ तक बढ़ जायगी। पति का चेहरा देखकर वह सहम-सी गयी। उनकी त्योरियाँ चढ़ी हुई, चेहरा स्याह, और आँखें गीली थीं। सोना अंदर आयी। विश्वमोहन ने उसकी तरफ आँखें उठाकर भी न देखा। उसने डरते-डरते पति से पूछा—कैसे लौट आये?
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