लोगों की राय

परिवर्तन >> बिखरे मोती

बिखरे मोती

सुभद्रा कुमारी चौहान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7135
आईएसबीएन :9781613010433

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

6 पाठक हैं

सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समय यत्र तत्र लिखी गई कहानियाँ

सोना का विवाह तय हो गया। वर की आयु बाइस या तेइस साल की थी। वह सुन्दर, स्वस्थ और चरित्रवान नवयुवक था। एक प्रेस में नौकरी करते थे; ७५) माहवार तनख्वाह पाते थे। घर में एक बूढ़ी माँ को छोड़कर और कोई न था। बिहार के रहने वाले थे। कुछ ही दिनों से यू.पी. में आये थे। पर्दे के बड़े पक्षपाती और पुरानी रूढ़ियों के कायल थे। नाम था विश्वमोहन। जब तिवारी जी ने विश्वमोहन और उनके घर को देखा तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। विश्वमोहन, बाबू क्या पूरे साहब देख पड़ते थे। उनके घर में खिड़की और दरवाजों पर चिकें पड़ी हुई थीं। ज़मीन पर एक दरी पड़ी थी जिसके बीच में एक ग़ोल मेज़ थी। मेज़ के आसपास कई कुर्सियाँ पड़ी थीं। जब विश्वमोहन ने तिवारी जी से चाय पीने का आग्रह किया और तिवारी जी को उनके आग्रह से चाय पीनी पड़ी तो वहाँ का साज-सामान देखकर तिवारी जी चकित हो गये। हर्ष से उनकी आँखें चमक उठीं सुन्दर-सुन्दर प्यालों में मेज़ पर चाय पीने की तिवारी जी के जीवन में यह पहिला ही अवसर था। चाय पीने के बाद तिवारी जी ने दो गिन्नी वरीक्षा में देकर शादी पक्की कर ली। रास्ते में नारायण बोला—कहो तिवारी जी, है न लड़का सौ में एक? है कोई तुम्हारे गाँव में ऐसा? जब कपड़े पहनकर हैट लगा कर निकलता है तब कोई नहीं कह सकता कि साहब नहीं है। सब लोग झुक कर सलाम करते हैं। घर में देखा कितना पर्दा है? सब खिड़की-दरवाज़ों पर चिकें पड़ी हैं। इसकी माँ बूढ़ी हो गयी हैं पर क्या मज़ाल कि कोई परछाईं भी देख ले। दोनों समय चाय पीते हैं, कुर्सियों पर बैठते हैं।

तिवारी जी ने हर्षोन्मुक्त होकर कहा—भाई नारायण, हम तुम्हारे इस उपकार के सदा आभारी रहेंगे। हमारे ढूँढ़े तो ऐसा घर-वर कभी न मिलता। हम देहात के रहने वाले शहर का हाल-चाल क्या जानें? पर तुमने मेरी सोना को अपनी लड़की समझ कर जो उसके लिए इतनी दौड़-धूप की है और ऐसा अच्छा जोड़ मिला दिया है, इस उपकार का फल तुम्हें ईश्वर देगा।

नारायण—अच्छा तिवारी जी अब जाकर विवाह की तैयारी करो। देखना इन्हें खाने-पीने का कुछ कष्ट न होने पावे। शहर के आदमी हैं; सब तकलीफें सह लेंगे, पर भूख नहीं सह सकेगें। खाते भी अच्छा हैं, देहात की मिठाई इन्हें अच्छी न लगेगी, कोई शहर का ही हलवाई ले जाकर मिठाई बनवा लेना। समझे।

तिवारी जी खुशी-खुशी घर लौटे। घर आकर जब उन्होंने नन्दो के सामने वर के रूप और गुण का बखान किया तो नन्दो फूली न समायी। वह जैसा घर-वर सोना के लिए चाहती थी, ईश्वर ने उसकी साध पूरी कर दी। इस कृपा के लिए उसने परमात्मा को शतशः धन्यावाद दिये, और नारायण को उसने कोटि-कोटि मन से आशीर्वाद दिया, जिसने इतनी दौड़-धूप करके मनचाहा घर और वर सोना के लिए खोज दिया था।

सोना ने जब सुना कि उसका विवाह हो रहा है तब वह दौड़ कर आयी। उसने माँ से पूछा—माँ! विवाह कैसा होता है और क्यों होता है?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book