परिवर्तन >> बिखरे मोती बिखरे मोतीसुभद्रा कुमारी चौहान
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सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समय यत्र तत्र लिखी गई कहानियाँ
अमराई
उस अमराई में सावन के लगते ही झूला पड़ जाता और विजयादशमी तक पड़ा रहता। शाम-सुबह तो बालक-बालिकाएँ और रात में अधिकतर युवतियाँ उस झूले की शोभा बढ़ातीं। यह उन दिनों की बात है जब सत्याग्रह आन्दोलन अपने पूर्ण विकास पर था। सारे भारतवर्ष में समराग्नि धधक रही थी। दमन का चक्र अपने पूर्ण वेग से चल रहा था। अखबारों में लाठी-चार्ज, गोली-काण्ड, गिरफ्तारी और सजा की धूम के अतिरिक्त और कुछ रहता ही न था। इस गाँव में भी सरकार के दमन का चक्र चल चुका था। काँग्रेस के सभापति और मन्त्री पकड़ कर जेल में बन्द कर दिये गये थे।
उस दिन राखी थी। बहिनें अपने भाइयों को सदा इस अमराई में ही राखी बाँधा करती थीं। यहाँ सब लोग एकत्रित होकर त्यौहार मनाया करते थे। बहिनें भाइयों को पहिले कुछ खिलातीं, माला पहिनाती, हाथ में नारियल देतीं और तिलक लगाकर हाथ में राखी बाँधते हुए कहतीं—‘‘भाई इस राखी की लाज रखना, लड़ाई के मैदान में कभी पीठ न दिखाना।’’
एक तरफ राखी का चित्ताकर्षक दृश्य था, दूसरी ओर छोटे-छोटे बच्चे और बच्चियाँ झूले पर झूल रहे थे। उनके सुकुमार हृदयों में भी देश-प्रेम के नन्हें-नन्हें पौधे प्रस्फुटित हो रहे थे। बहादुरी के साथ देश हित के लिए फाँसी पर लटक जाने में वे भी शायद गौरव समझते थे। पहिले तो लड़कियाँ कजली गा रही थीं। एकाएक एक छोटा बालक गा उठा—
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
फिर क्या था, सब बच्चे कजली-वजली तो गये भूल और लगे चिल्लाने—
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
इसकी खबर ठाकुर साहब के पास पहुँची। अमराई उन्हीं की थी। अभी तीन ही महीने पहिले वे राय साहेब हुए थे। आनरेरी मजिस्ट्रेट तो थे ही, और थे सरकार के बड़े भारी खैरख्वाह। जब उन्होंने सुना कि अमराई तो असहयोगियों का अड्डा बन गयी है, प्रायः इस प्रकार वहाँ रोज़ ही होता है तो वे घबराए, फौरन घोड़ा कसवा कर अमराई की ओर चल पड़े। किन्तु उनके पहुँचने के पहिले ही वहाँ पुलिस भी पहुँच चुकी थी। ठाकुर साहब! आप से तो हमें ऐसी उम्मीद न थी। मालूम होता है कि आप भी उन्हीं में से हैं। यह सब आपकी ही तबियत से हो रहा है। आप पाँच मिनट के अंदर यह मजमा यहाँ से हटवा दीजिए; वरना हमें मजबूर होकर लाठियाँ चलवानी पड़ेंगी।
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