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बिखरे मोती

सुभद्रा कुमारी चौहान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7135
आईएसबीएन :9781613010433

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सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समय यत्र तत्र लिखी गई कहानियाँ

किन्तु धीरे-धीरे मुझ पर होने वाले अत्याचारों का पता उन्हें लग ही गया। उनके दयालु हृदय को इससे गहरी चोट पहुँची। उस दिन, अन्तिम दिन जब मैं पानी भरने गयी, वे कुएँ पर आये और मुझसे बोले—मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ।

उनके स्वर में पीड़ा थी, शब्दों में माधुर्य, और आँखों में न जाने कितनी करुणा का सागर उमड़ रहा था। मैंने आश्चर्य से उनकी ओर देखा। आज पहिली ही बार तो इस प्रकार वे मेरे पास आकर बोले थे। उन्होंने कहा—पहिली बात जो मैं तुमसे कहना चाहता हूँ वह यह कि मेरे ही कारण तुम पर इतने अत्याचार हो रहे हैं। यदि मुझे इसका पता चल जाता तो वे अत्याचार कब के बन्द हो चुके होते। दूसरी बात जो मैं तुमसे कहने आया हूँ वह यह कि आज से मैं तुम पर होने वाले अत्याचार की जड़ ही उखाड़ कर फेंके देता हूँ। तुम खुश रहना, मेरी अल्हड़ रानी! (वे मुझे इसी नाम से पुकारा करते थे) यदि मैं तुम्हें भूल सका तो फिर यहाँ लौटकर आऊँगा, नहीं तो आज ही सदा के लिए बिदा होता हूँ।

मुझ पर बिजली-सी गिरी। मैं कुछ बोल भी न पायी थी कि वे मेरी आँखों से ओझल हो गये। अब मेरी हालत पहिले से ज्यादा खराब थी। मेरा किसी काम में जी न लगता था। कलेजे में सदा एक आग-सी सुलगा करती। परन्तु मुझे खुल कर रोने का अधिकार न था। अब तो सभी लोग मुझे पागल कहते हैं। मैं कुछ करूँ, करने देते हैं। इसीलिए तो आज खुल कर रो सकती हूँ और तुम्हें भी अपनी कहानी सुना सकती हूँ। किन्तु क्या तुम बता सकते हो कि वे कहाँ हैं? मैं एक बार उन्हें और देखना चाहती हूँ। मेरी यह पीड़ा, मेरा यह उन्माद उन्हीं का दिया हुआ तो है। यदि कोई सहृदय उनका पता बता दे तो मैं उनकी थाती उन्हीं को सौंप दूँ।

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