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बिखरे मोती

सुभद्रा कुमारी चौहान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7135
आईएसबीएन :9781613010433

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सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समय यत्र तत्र लिखी गई कहानियाँ

दूसरे दिन मुझे अकेले ही पानी भरने जाना पड़ा। मैं रस्सी और घड़ा लेकर पानी भरने गयी तो ज़रूर पर दिल धड़क रहा था कि बनता है या नहीं। न सास साथ थीं, और न कोई कुएँ पर ही था। मैंने घूँघट खोल लिया और रस्सी को अच्छी तरह से घड़े में पानी भरा—उसे खींचने लगी। किसी प्रकार खिंचता ही न था। ज्यों-त्यों करके आधी रस्सी खींच पायी थी कि वे सामने से आते हुए दिखाई दिये। कुआँ उनके अहाते के ही अन्दर था और बँगले में जाने का रास्ता भी वहीं से था। सामने से वे आते हुए दिखे, लाज के मारे ज्योंही मैंने घूँघट सरकाने के लिए एक हाथ से रस्सी छोड़ी, त्योंही अकेला दूसरा हाथ पानी से भरे घड़े का वजन न सम्हाल सका, झटके के साथ रस्सी समेत घड़ा कुएँ में जा गिरा। मैं भी गिरते-गिरते बची। एक मिनट में यह सब कुछ हो गया। वे बँगले से कुएँ के पास आ चुके थे। मैं बड़ी घबरायी, घूँघट-ऊँघट सरकाना तो भूल गयी, झुककर कुएँ में देखने लगी। मेरे पास तो रस्सी और घड़ा निकालने का कोई साधन ही न था, निरुपाय हो कातर दृष्टि से उनकी ओर देखा। मेरी अवस्था पर शायद ही उन्हें दया आयी। वे पास आकर बोले—‘‘आप घबराइए नहीं, मैं अभी घड़ा निकलवाये देता हूँ,’’ फिर कुछ कहकर मुस्कराते हुए बोले—‘‘किन्तु आपने यह साबित कर दिया कि आप शहर की एक अल्हड़ लड़की हैं।’’

मैं ज़रा हँसी और अपना घूँघट सरकाने लगी। मुझे घूँघट सरकाते देख वे ज़रा मुस्कराये, मैं भी ज़रा हँस पड़ी पर कुछ बोली नहीं। उनके नौकर आये और देखते ही देखते रस्सी समेत घड़ा निकाल लिया गया। मैं घड़ा उठाकर अपने घर की तरफ चली। शब्दों में नहीं, किन्तु कृतज्ञता भरी आँखों से मैंने उनसे कहा—‘‘मैं आपके इस उपकार का बदला इस जीवन में कभी न चुका सकूँगी।’’ करीब पौन घंटा कुएँ पर लग गया। अम्मा जी की घुड़कियों का डर तो लगा ही था। जल्दी-जल्दी आयी, घड़े को घनौची पर रख, रस्सी को खूँटी पर टाँगने के लिए ज्योंही हाथ ऊपर उठाया, देखा कि एक हाथ का सोने का कंगन नहीं है। तुम कहोगी कि पानी भरने वाली और सोने का कंगन, यह कैसा मेल! वह भी बताती हूँ—यह कंगन मेरी माँ का था। मरते समय उन्होंने अनुरोध किया था कि यह कंगन ब्याह के समय मुझे पैर-पुजाई में दिया जाय। इस प्रकार यह कंगन मुझे मिला था। रस्सी टाँग कर मैं फिर कुएँ की तरफ भागी, देखा तो वे सामने से आ रहे थे। उन्होंने यह कहकर कि ‘‘यह तुम्हारे अल्हड़पन की निशानी है’’, कंगन मेरी तरफ बढ़ा दिया। कंगन लेकर चुपचाप मैंने जेब में रख लिया और जल्दी-जल्दी घर आयी।

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