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बिखरे मोती

सुभद्रा कुमारी चौहान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7135
आईएसबीएन :9781613010433

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सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समय यत्र तत्र लिखी गई कहानियाँ

थाती

क्यों रोती हूँ? इसे नाहक पूछ कर जले पर नमक न छिड़को! जरा ठहरो! जी भर कर रो भी तो लेने दो, न जाने कितने दिनों के बाद आज मुझे खुलकर रोने का अवसर मिला है। मुझे रोने में सुख मिलता है, शान्ति मिलती है, इसलिए मैं रोती हूँ। रहने दो, उसमें बाधा न डालो, रोने, दो।

क्या कहा? किसके लिए रोती हूँ? आह!! उसे सुनकर क्या करोगे? उससे तुम्हें कुछ लाभ न होगा।, पूछो ही न तो अच्छा है। मेरी यह पीड़ा ही तो मेरी सम्पत्ति है, जिसे मैं बड़ी सावधानी से अपने हृदय में छिपाये हूँ। इतने पर भी सुनना ही चाहते हो तो लो कहती हूँ। किन्तु देखो! जो कहूँ वही सुनना और कुछ न पूछना।

वे एक धनवान माता-पिता के बेटे थे। ईश्वर ने उन्हें अनुपम रूप दिया था। जैसा उनका कलेवर सुन्दर था, उससे कहीं अधिक सुन्दर था उनका हृदय। वे बड़े ही नेक, दयालु और उदार प्रकृति के पुरुष थे। गाँव के बच्चे उन्हें देखते ही खुश हो जाते, बूढ़े आशीर्वाद की वर्षा करते, स्त्रियाँ उन्हें अपना सच्चा भाई और हितू समझतीं और नौजवान उनके इशारे पर नाचते थे। तात्पर्य यह कि वे सभी के प्यारे थे और सभी पर उनका स्नेह था।

मैं उन्हीं के गाँव की बहू थी। मेरे पति वहीं प्राइमरी पाठशाला में मास्टर थे। घर में बूढ़ी सास थी, मेरे पति थे और मैं थी। मँहगी का जमाना था, अट्ठाइस रुपये आठ आने में मुश्किल से गुज़र होती थी। घर के प्रायः सभी छोटे-मोटे काम हाथ से ही करने पड़ते थे।

एक दिन की बात है, मैं वैसे ही ब्याह कर आयी थी। मैं थी शहर की लड़की, वहाँ तो नलों से काम चलता था, भला कुएँ से पानी भरना मैं क्या जानती? मेरी सास मुझे अपने साथ कुएँ पर पानी भरना सिखा रही थीं। अचानक वे न जाने कहाँ से आ गये, हँसकर बोले—‘‘क्या पानी भरने की शिक्षा दे रही हो, माँ जी? आपने ऐसी अल्हड़ लड़की ब्याही ही क्यों, जिसे पानी भरना भी नहीं आता?’’ मैंने घूँघट के भीतर से ही ज़रा सा मुस्करा दिया।

सास ने कहा—बेटा! इसे कुछ नहीं आता! बस रोटी भर अच्छा बनाती है, न पीसना जाने न कूटना। गोबर से तो इसे जैसे घिन आती हो, बड़ी मुश्किल से तो कहीं कंडे थापती है, तो उसके बाद दस बार हाथ धोती है। हम तो बेटा, गरीब आदमी हैं। हमारे घर में तो सभी कुछ करना पड़ेगा।

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