परिवर्तन >> बिखरे मोती बिखरे मोतीसुभद्रा कुमारी चौहान
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सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समय यत्र तत्र लिखी गई कहानियाँ
कहते हैं ढलती उमर का विवाह और विशेषकर दूसरे विवाह की सुन्दर स्त्री मनुष्य को पागल बना देती है। था भी कुछ ऐसा ही।
कुन्तला अपने जीवन से बेजार-सी हो रही थी।
किन्तु राधेश्याम को किस प्रकार रोक सकती थी? क्योंकि वह उनकी विवाहिता पत्नी ठहरी। सात भाँवरें फिर लेने के बाद राधेश्याम को तो उसके शरीर की पूरी मोऩॉपली-सी मिल चुकी थी न!
इधर कुछ दिनों से शहर में एक स्त्री-समाज की स्थापना हुई थी। एक दिन उसकी कार्यकारिणी की कुछ महिलाएँ आकर कुन्तला को भी निमंत्रण दे गयीं। कुन्तला ने सोचा, अच्छा ही है, घंटे-दो-घंटे घर से बाहर रहकर अपने इस जीवन के अतिरिक्त और भी देखने और सोचने-समझने का अवसर मिलेगा। उसने निमन्त्रण स्वीकार कर लिया और वहाँ गयी भी। वहाँ जितनी स्त्रियों ने भाषण पढ़े या दिये, कुन्तला ने सुने। उसने सोचा वह इन सबसे अधिक अच्छा लिख सकती है और बोल सकती है। घर आकर उसने भी एक लेख लिखा। विषय था—भारत की वर्तमान सामाजिक अवस्था में स्त्रियों का स्थान। राधेश्याम जी ने भी लेख देखा। बहुत ही प्रसन्न हुए। लेख लिये हुए वे बाहर गये, बैठक में कई मित्र थे, उन्हें दिखलाया, सभी ने लेखिका की शैली एवं सामयिक ज्ञान की प्रशंसा की।
अपने एक साहित्य-सेवी मित्र अखिलेश्वर को लेकर राधेश्याम भीतर आये। कुन्तला को बुलाकर बोले—कुन्तला, तुम्हारा लेख बहुत ही अच्छा है। मुझे नहीं मालूम था कि तुम इतना अच्छा लिख सकती हो नहीं तो तुमसे सदा लिखते रहने का आग्रह करता। तुम्हारे इस लेख में कहीं-कहीं भाषा की त्रुटियाँ हैं ज़रूर, पर ये मेरे मित्र अखिलेश्वर ठीक कर देंगे। अब तुम रोज कुछ लिखा करो, ये ठीक कर दिया करेंगे। मुझे तो भाषा का ज्ञान नहीं अन्यथा मैं ही देख लिया करता। खैर कोई बात नहीं, वह भी घर ही के-से आदमी हैं।
कुन्तला के लेखों का भार अखिलेश्वर को सौंप कर राधेश्याम को बहुत सन्तोष हुआ।
कुन्तला को अब एक ऐसा साथी मिला था, जिसकी आवश्यकता वह बहुत दिनों से अनुभव कर रही थी, जो उसे घरेलू जीवन के अतिरिक्त और भी बहुत सी उपयोगी बातें बता सकता था, जो उसे अच्छे से अच्छे लेखकों और कवियों की कृतियों का रसास्वादन करा के साहित्यिक जगत की सैर करा सकता था। कुन्तला अखिलेश्वर का साथ पाकर बहुत सन्तुष्ट थी। अब उसे अपना जीवन उतना कष्टमय और नीरस न मालूम होता था। कुन्तला और अखिलेश्वर प्रतिदिन एक बार अवश्य मिला करते। कुन्तला की अभिरुचि साहित्य की ओर देखकर, उसकी विलक्षण कुशाग्र बुद्धि एवं लेखन-शैली की असाधारण प्रतिभा पर अखिलेश्वर मुग्ध थे। वे उसे एक सुयोग्य रमणी बनाने में, उसकी प्रतिभा के पूर्ण रूप से विकसित करने में सदा प्रयत्नशील रहते थे। लाइब्रेरी में जाते, अच्छी से अच्छी पुस्तकें लाते और उसे घंटों पढ़कर सुनाया करते। कविवर शेली, टेनीसन और कीट्स तथा महाकवि शेक्सपीयर इत्यादि के ऊँचे दरजे की कविताएँ पढ़कर उसे समझाते, उसके सामने व्याख्या तथा आलोचना करते और उससे करवाते। हिन्दी के धुरंधर कवियों की रचनाएँ सुना कर वे कुन्तला की प्रवृत्ति कविता की ओर फेरना चाहते थे।
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