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बिखरे मोती

सुभद्रा कुमारी चौहान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7135
आईएसबीएन :9781613010433

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सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समय यत्र तत्र लिखी गई कहानियाँ

इसके कुछ ही दिन बाद, राधेश्याम जी जब एक दिन अपनी बैठक में कुछ मित्रों के साथ बैठे थे, और बाहर उनका लड़का हरिहर नौकर के साथ खेल रहा था, सामने से एक ताँगा निकला। न जाने कैसे ताँगे का एक पहिया निकल गया और ताँगा कुछ दूर तक घिसटता हुआ चला गया। एक सात-आठ साल का बालक ताँगे से गिर पड़ा और एक बालिका जो कदाचित् उसकी बड़ी बहिन थी, गिरते-गिरते बच कर दूसरी तरफ खड़ी हो गयी। बालक को अधिक चोट न आयी थी। बालिका ने, मृगशावक की तरह घबराये हुए अपने दो सुन्दर नेत्र चंचल गति से सहायता के लिए चारों ओर फेरे और फिर अपने भाई को उठाने लगी। राधेश्याम जी ने देखा, और दौड़ पड़े। बालक को उठा कर झाड़ने-पोंछने लगे। राधेश्याम के एक मित्र जगमोहन जो राधेश्याम के साथ ही दौड़ कर बाहर आये थे, बालिका को संबोधन कर के बोले—कहाँजा रही थीं कुन्तला?

—मौसी के घर जनेऊ है। वहीं अम्माँ के पास जा रही थी, कुन्तला ने शरमाते हुए कहा।

कुन्तला को देखते ही राधेश्यामजी की एक सोयी हुई स्मृति जाग सी पड़ी। दूसरा ताँगा बुलवा कर कुन्तला को उसमें बैठा कर उसे रवाना करके राधेश्याम जगमोहन के साथ अपनी बैठक में आ गये।

एक दिन बात-ही-बात में राधेश्याम ने जगमोहन से पूछा—भाई! वह किसकी लड़की थी जो उस दिन ताँगे पर से गिर पड़ी थी?

जगमोहन ने बतलाया कि वह पंडित नंदकिशोर की कन्या है। पढ़ी-लिखी, गृह-कार्य में कुशल और सुन्दर होने पर भी धनाभाव के कारण अभी तक कुमारी। बेचारे तिवारी जी पचास रुपये माहवार पर एक आफिस में नौकर हैं। बड़ा परिवार है। पचास रुपये में तो खाने-पहिनने को भी मुश्किल से पूरा पड़ता होगा। फिर लड़की के विवाह के लिए दो-तीन हजार रुपये कहाँ से लावें। कान्यकुब्जों में तो बिना हरौनी के कोई बात ही नहीं करता। कष्ट ही में हैं बेचारे। लड़की सयानी है। पढ़ा-लिखा कर किसी मूर्ख के गले भी तो नहीं बाँधते बनता।

एक बार तिवारी जी पर उपकार करने की सद्भावना से राधेश्यामजी का हृदय आतुर हो उठा; किन्तु तुरन्त ही मनोरमा की स्मृति ने उन्हें सचेत कर दिया। तिवारी जी पर उपकार करना, मनोरमा को हृदय से भुला देना था। राधेश्याम को जैसे कोई भूली बात याद आ गयी हो, वे अपने आप ही सिर हिलाते हुए बोल उठे, ‘‘नहीं, यह कभी नहीं हो सकता।’’

राधेश्याम के हृदय की हलचल को जगमोहन ने ताड़ लिया। वार करने का उन्होंने यही उपयुक्त अवसर समझा, सम्भव है, निशाना ठीक पड़े।

‘‘तुम क्या कहते हो राधेश्याम? है न लड़की बड़ी सुन्दर? पर बिचारी को कोई योग्य वर ही नहीं मिलता। अगर तुम इससे विवाह कर लो तो कैसा रहे?’’

राधेश्याम उदासीनता से बोले—भाई! लड़की सुन्दर तो जरूर है; पर मैंने तो विवाह न करने की प्रतिज्ञा कर ली है।

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