परिवर्तन >> बिखरे मोती बिखरे मोतीसुभद्रा कुमारी चौहान
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सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समय यत्र तत्र लिखी गई कहानियाँ
वहाँ की गंदगी और कुंद हवा देखकर डाक्टर साहब घबरा गये। बीमार की नब्ज देखकर उन्होंने उसके फेफड़ों को देखा, परन्तु सिवा कमजोरी के और कोई बीमारी उन्हें न देख पड़ी।
वे बोले—इन्हें कोई बीमारी तो नहीं है, यह सिर्फ बहुत ज़्यादा कमज़ोर हैं। आप इन्हें शोरबा देते हैं?
रहमान—शोरबा यह जब लें तब न? मैं तो कह-कह के तंग आ गया हूँ। यह कुछ खाती ही नहीं। दूध और साबूदाना खाती हैं, उससे कहीं ताक़त आती है?
डाक्टर साहब ने पूछा—क्यों, इन्हें शोरबे से परहेज है।
रहमान—परहेज क्या होगा डाक्टर साहब? कहती हैं कि हमें हजम ही नहीं होता।
डाक्टर साहब ने हँसकर कहा—वाह हजम कैसे न होगा, हम तो कहते हैं सब हजम होगा।
डाक्टर साहब इतनी मेहरबानी और कीजिएगा कि शोरबा इन्हें आप ही पिला जाइए, क्योंकि मैं जानता हूँ यह मेरी बात कभी न मानेंगी।
डाक्टर साहब रहमान की स्त्री की तरफ मुड़कर बोले—कहिये आप हमारे कहने से थोड़ा शोरबा ले सकती हैं न? हज़म कराने का जिम्मा हम लेते हैं।
उसने डाक्टर के आग्रह का कोई उत्तर नहीं दिया, सिर्फ सिर हिला कर अस्वीकृति की सूचना ही दी। उसके मुँह पर लज्जा और संकोच के भाव थे। उसका मुँह दूसरी तरफ था जिससे साफ जाहिर होता था कि वह डाक्टर के सामने अपना मुँह ढाँक लेना चाहती है। डाक्टर साहब ने फिर आग्रह किया—आपको आज मेरे सामने थोड़ा शोरबा लेना ही पड़ेगा; उससे आप को जरूर फायदा होगा।
इस पर भी उसने अस्वीकृति-सूचक सिर हिला दिया, कुछ बोली नहीं। इतने से ही डाक्टर साहब हताश न होने वाले थे। उन्होंने रहमान से पूछा कि शोरबा तैयार हो तो थोड़ा लाओ, इन्हें पिलायें।
रहमान उत्सुकता के साथ कटोरा उठाकर पिछवाड़े साफ करने गया। इसी अवसर पर उसकी स्त्री ने आँख उठाकर अत्यंत कातर दृष्टि से डाक्टर साहब की ओर देखते हुए कहा—डाक्टर साहब, मुझे माफ करें, मैं शोरबा नहीं ले सकती।
स्वर कुछ परिचित-सा था और आँखों में विशेष चितवन जिससे डाक्टर साहब कुछ चकराये। एक धुँधली-सी स्मृति उनकी आँखों के सामने आ गयी। उनके मुँह से अपने आप निकल गया—क्यों?
छलकती हुई आँखों से स्त्री ने जवाब दिया—आज एकादशी है।
डाक्टर साहब चौंक-उठे। विस्फारित नेत्रों से उसकी ओर देखते रह गये।
उसी दिन से डाक्टर मिश्रा भी शुद्धी और संगठन के पक्षपाती हो गये।
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