परिवर्तन >> बिखरे मोती बिखरे मोतीसुभद्रा कुमारी चौहान
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सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समय यत्र तत्र लिखी गई कहानियाँ
एकादशी
शहर भर में डाक्टर मिश्रा के मुकाबिले का कोई डाक्टर न था। उनकी प्रैक्टिस खूब बढ़ी-चढ़ी थी। यशस्वी हाथ के साथ ही साथ वे बड़े विनोदप्रिय, मिलनसार और उदार भी थे। उनकी प्रसन्न मुद्रा और उनकी उत्साहजनक बातें मुर्दों में भी जान डाल देती थीं। रोता हुआ रोगी भी हँसने लगता था। वे रोगी के साथ इतनी घनिष्ठता दिखलाते कि जैसे बहुत निकट का सम्बन्धी या मित्र हो। कभी-कभी तो बीमार की उदासी दूर करने के लिए, उसके हृदय में विश्वास और आशा का संचार करने के लिए वे रोगी के पास घंटों बैठकर न जाने कहाँ-कहाँ की बातें किया करते।
उन्हें बच्चों से भी विशेष प्रेम था। यही कारण था कि वे जिधर से निकल जाते, बच्चे उनसे हाथ मिलाने के लिए दौड़ पड़ते। और सबसे अधिक बच्चों को अपने पास खींच लेने का आकर्षण उनके पास था—उनके जेब की मीठी गोलियाँ, जिन्हें वे केवल बच्चों के ही लिए रखा करते थे। वे होमियोपैथिक चिकित्सक थे। बच्चे उनसे मिलकर बिना दवा खाये मानते ही न थे; इसलिए उन्हें सदा अपने जेब में बिना दवा की गोलियाँ रखनी पड़ती थीं।
एक दिन इसी प्रकार बच्चों ने उन्हें आ घेरा। आज उनके ताँगे पर कुछ फल और मिठाई थी, जिसे उनके एक मरीज ने उनके बच्चों के लिए रख दिया था। डाक्टर साहब ने आज दवा की मीठी गोलियों के स्थान में मिठाई देना आरंभ किया। उन बच्चों में एक दस वर्ष की बालिका भी थी, जिसे डाक्टर साहब ने पहिली ही बार अपने इन छोटे-छोटे मित्रों में देखा था। बालिका की मुखाकृति और विशेष कर आँखों में एक ऐसी भोली और चुभती हुई मोहकता थी कि उसे स्मरण रखने के लिए उसके मुँह की ओर दूसरी बार देखने की आवश्यकता न थी। दूसरे बच्चों की तरह डाक्टर साहब ने उसे भी मिठाई देने के लिए हाथ बढ़ाया, किन्तु बालिका ने कुछ लज्जा और संकोच के साथ सिमट कर सिर हिलाते हुए मिठाई लेने से इन्कार कर दिया। बालक और मिठाई न ले, यह बात जरा विचित्र सी थी। डाक्टर साहब ने एक की जगह दो लड़्डू देते हुए उससे फिर बड़े प्रेम के साथ लेने के लिए आग्रह किया। बालिका ने फिर सिर हिलाकर अस्वीकृति की सूचना दी। तब डाक्टर साहब ने पूछा—क्यों बिटिया, मिठाई क्यों नहीं लेती?
—आज एकादशी है। आज भी कोई मिठाई खाता है?
डाक्टर साहब हँस पड़े और बोले—यह इतने बच्चे खा रहे हैं सो?
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