परिवर्तन >> बिखरे मोती बिखरे मोतीसुभद्रा कुमारी चौहान
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सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समय यत्र तत्र लिखी गई कहानियाँ
हाथ जोड़े ही जोड़े चौधरी बोले—महराजा, पन्द्रह साल पहले की बात है, नदी में बहुत बाढ़ आयी थी। उसी बाढ़ में, मेरे बुढ़ापे की लकड़ी यह कन्या मुझे मिली थी यह एक खाट पर बहती हुई आयी थी और इसके गले में एक छोटी-सी सोने की ताबीज़ थी।
ताबीज़ का नाम सुनते ही राजा साहब को ताबीज़ देखने की उत्सुकता हुई। उनके मस्तिष्क में किसी ताबीज़ की धुंधली स्मृति छा गयी। पिता के आदेश से तिन्नी गले से ताबीज़ निकालने के लिए ताबीज़ की गाँठ खोलने लगी।
मछुए ने फिर कहना शुरू किया—महाराज! इस ताबीज़ का भी बड़ा विचित्र किस्सा है। एक बार ताबीज़ का धागा टूट गया, कई दिनों तक याद न रहने के कारण यह ताबीज़ इसे न पहनाई जा सकी। बस महाराज, यह तो इतनी ज्यादा बीमार पड़ी कि मरने-जीने की नौबत आ गयी। और फिर ताबीज़ पहनाते ही बिना दवा-दारू के ही चंगी भी हो गयी। तब से ताबीज़ आज तक उसके गले में पड़ी है।
राजा साहब को स्मरण आया कि पन्द्रह साल पहले उनकी लड़की भी टेन्ट के अन्दर से बाढ़ में बह गयी थी, जिसके गले में उन्होंने एक ज्योतिषी के आदेशानुसार ताबीज़ पहनायी थी। उन्होंने एक बार कृष्णदेव, और फिर तिन्नी के मुँह की तरफ देखा। उन्हें उनके मुँह में बहुत कुछ समानता दीख पड़ी। तब तक तिन्नी ने गले से ताबीज़ निकाल कर राजा साहब के सामने कर दिया। राजकुमार का हृदय बड़े ही वेग से धड़क रहा था। ताबीज़ हाथ में लेते ही राजा साहब ने ‘मेरी कान्ती’ कहते हुए तिन्नी को छाती से लगा लिया। यह वही ताबीज़ था जिसे ज्योतिषी के आदेश से राजा साहब ने पुत्री के गले में पहनाया था।
पिता-पुत्री और भाई-बहिन का यह अपूर्व सम्मिलन था। सब की आँखों में प्रेम के आँसू उमड़ आये।
अब महल के पास ही चौधरी के रहने के लिए पक्का मकान बन गया है। चौधरी अपनी स्त्री समेत वहीं रहते हैं। अब उन्हें नाव नहीं चलानी पड़ती, रियासत की ओर से उनकी जीविका के लिए अच्छी रकम बाँध दी गयी है।
राज-महल में रहती हुई भी कान्ती चौधरी के घर आकर तिन्नी हो जाती है। अब भी वह चौधरी के साथ उनकी थाली में बैठकर चौधराइन के हाथ की मोटी-मोटी रोटियाँ खा जाती है।
तिन्नी को बहन के रूप में पाकर कृष्णदेव को कम प्रसन्नता न थी। वे तिन्नी का साथ चाहते थे, चाहे वह पत्नी के रूप में हो या बहन के।
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