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बिखरे मोती

सुभद्रा कुमारी चौहान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7135
आईएसबीएन :9781613010433

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सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समय यत्र तत्र लिखी गई कहानियाँ

दूसरे ही दिन रियासत से तिन्नी समेत चौधरी का बुलावा हुआ। उन्हें शीघ्र से शीघ्र उपस्थित होने की आज्ञा थी और साथ ही उन्हें लेने के लिए सवारी भी आयी थी। इस घटना ने मुहल्ले भर में हलचल मचा दी थी। चौधरी बहुत घबराये। सोचा, ‘‘अवश्य ही मेरी अनुपस्थिति में इस उदंड लड़की ने कोई अनुचित व्यवहार कर दिया होगा। राजा साहब जरूर नाराज हैं, नहीं तो तिन्नी समेत लाये जाने का कारण ही क्या हो सकता है! मुहल्ले वाले सभी चौधरी को समयोचित सीख देने आये। अपनी-अपनी समझ के अनुसार किसी ने कुछ कहा, किसी ने कुछ। किन्तु तिन्नी का हृदय कुछ और ही बोल रहा था। तिन्नी पिता के पास मोटर पर बैठने ही वाली थी, मनोहर ने आकर धीरे से तिन्नी से कहा—तिन्नी! कहीं राजकुमार ने तुम्हें अपनी रानी बनाने के लिए बुलाया हो तो?

‘‘कुछ तुम मुझे अपनी रानी बनाते थे, कुछ राजकुमार बनायेंगे।’’

‘‘तिन्नी! तुम सदा ही मेरे हृदय की रानी रही हो और रहोगी।

आज ऐसी बातें क्यों करती हो?’

‘‘सो कैसे? बिना विवाह हुए ही मैं तुम्हारी या तुम्हारे हृदय की रानी कैसे बन सकती हूँ?’’—तिन्नी ने रुखाई से पूछा।

‘‘तिन्नी! रानी बनने के लिए विवाह ही थोड़े जरूरी है। जिसे हम प्यार करें वही हमारी रानी।’’

तिन्नी का चेहरा तमतमा गया। बोली—‘‘धत्! मैं ऐसी रानी नहीं बनना चाहती। ऐसी रानी से तो मछुए की बेटी ही भली!’’ और मनोहर के उत्तर की प्रतीक्षा न करके पिता के पास जाकर मोटर पर बैठ गयी। मोटर स्टार्ट हो गयी।

जब यह लोग रियासत में राजा साहब के महल के सामने पहुँचे तब कुछ अँधेरा हो चला था। इनके पहुँचने की सूचना राजा साहब को दी गयी। चौधरी पुत्री समेत महल के एक सूने कमरे में बुलाये गये। कमरे में राजा साहब और कृष्णदेव को छोड़कर कोई न था। डर के मारे चौधरी की तो हुलिया बिगड़ रही थी। किन्तु तिन्नी मन ही मन मुस्करा रही थी। पिता-पुत्री का उचित सम्मान करने के उपरान्त राजा साहब ने मछुए को संबोधन करके कहा—चौधरी, हमने तुम्हें किसलिए बुलाया है कदाचित् तुम नहीं जानते।

चौधरी भय से काँप उठे। हाथ जोड़कर बोले—मैं तो महाराज का गुलाम हूँ, सदा...

राजा साहब बात काटते हुए बोले—हम तुम्हारी इस कन्या को राजकुमार के लिए चाहते हैं।

तिन्नी ओठों के भीतर मुस्करायी और चौधरी आश्चर्य से चकित हो गये। एक बार राजा साहब की ओर और फिर उन्होंने तिन्नी की ओर देखा। सहसा चौधरी को इस बात पर विश्वास न हुआ। कहाँ मैं एक साधारण मछुआ और कहाँ वे रियासत के राजा! हमारे बीच में कभी रिश्तेदारी भी हो सकती है? फिर न जाने क्या सोचकर भय-विह्वल चौधरी ने हाथ जोड़कर कहा—महाराज, यह कन्या मेरी नहीं है।

राजा साहब चौंक उठे। आश्चर्य से उन्होंने चौधरी से पूछा—फिर यह किसकी लड़की है?

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