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बिखरे मोती

सुभद्रा कुमारी चौहान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7135
आईएसबीएन :9781613010433

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सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समय यत्र तत्र लिखी गई कहानियाँ

राजा साहब से कुछ छिपा न था। कुमार रोज़ जल-विहार के लिए जाते हैं, और तिन्नी ही नाव चलाया करती है, यह राजा साहब ने सुन लिया था। अतएव बात को इससे अधिक न बढ़ने देने के अभिप्राय से राजा साहब बिना शिकार खेले ही एक दिन अपनी रियासत को लौट गये। जाने को पिता के साथ कृष्णदेव भी गये; किन्तु उनका हृदय मछुए के झोंपड़े में तिन्नी के ही पास छूट गया था। रियासत पहुँचकर कृष्णदेव सदा उदास और न जाने किन विचारों में निमग्न रहा करते। शायद उन्हें रह रह कर मनोहर के भाग्य पर ईर्ष्या होती थी। वह सोचते—मनोहर किस प्रकार तिन्नी के पास बैठकर नाव चलाया करता था। तिन्नी कैसी घुल-घुल कर हँसती हुई उससे बातें किया करती थी। एक मामूली आदमी होकर भी मनोहर कितना सुखी है। काश! मैं भी एक मछुआ होता और तिन्नी के पास बैठकर नाव चला सकता—तो कितना सुखी न होता?

किन्तु किसी से कुछ भी न कहते। हाँ, अब उन्हें आखेट से रुचि न थी। शतरंज के वे बहुत अच्छे खिलाड़ी थे; किन्तु अब मुहरों की ओर उनसे आँख उठाकर देखा भी न जाता। अध्ययन से भी उन्हें बड़ा प्रेम था। उनकी लायब्रेरी में विद्वान् लेखकों की अच्छी-से-अच्छी पुस्तकें थीं; किन्तु उन पर अब इंचों धूल जम रही थी।

यार-दोस्त आते, घंटों छेड़छाड़ करते, किन्तु कृष्णदेव में तिल-भर का भी परिवर्तन न होता। उनके अन्तर्जगत में कितना भयंकर तूफान उठ रहा था, यह किसे मालूम था? कृष्णदेव अपनी वेदना चुपचाप पी रहे थे। किन्तु उनकी आंतरिक पीड़ा को उनकी शारीरिक अवस्था बतला रही थी। उनका स्वास्थ्य दिनों-दिन गिरता जा रहा था।

पिता से पुत्र की बीमारी छिपी न थी। वे सब जानते थे किन्तु वे चाहते यह थे कि बात किसी प्रकार दबी की दबी रह जाय, उन्हें बीच में न पड़ना पड़े। कृष्णदेव उनका इकलौता पुत्र था। पुत्र की चिंता उन्हें रात-दिन बनी रहती थी। तिन्नी के अनिन्दनीय रूप चातुर्य ने राजा साहब को आकर्षित न किया हो, सो बात न थी। किन्तु थी तो वह आखिर मछुए की ही बेटी! राजा साहब उससे कृष्णदेव का विवाह करते भी तो कैसे?

एक दिन राजा साहब कृष्णदेव के कमरे में गये। उस समय वह सोये हुए थे। आँखों के पास रोते-रोते गड्ढे से पड़ गये थे। चेहरा पीला-पीला और शरीर सूखकर काँटा-सा हो रहा था। ज़मीन पर ही एक चटाई के ऊपर बिना तकिये के, मखमली बिछौनों पर सोने वाला उनका दुलारा कृष्णदेव, न जाने किस चिंता में पड़े-पड़े सो गया था। राजा साहब की आँखों में आँसू आ गये! वे कुछ न बोलकर चुपचाप कृष्णदेव के कमरे से बाहर निकल आये।

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