परिवर्तन >> बिखरे मोती बिखरे मोतीसुभद्रा कुमारी चौहान
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सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समय यत्र तत्र लिखी गई कहानियाँ
कदम्ब के फूल
—भौजी! लो मैं ले आया।
—सच ले आये? कहाँ मिले?
—अरे! बड़ी मुश्किल से ला पाया, भौजी!
—तो मज़दूरी ले लेना।
—क्या दोगी?
—तुम जो माँगो।
—पर मेरी माँगी हुई चीज़ मुझे दे भी सकोगी?
—क्यों न दे सकूँगी? तुम मेरी वस्तु मेरे लिए ला सकते हो तो क्या मैं तुम्हारी इच्छित वस्तु तुम्हें नहीं दे सकती?
—नहीं भौजी न दे सकोगी। क्यों नाहक कहती हो!
—अब तुम्हीं न लेना चाहो तो बात दूसरी है, पर मैंने तो कह दिया कि तुम जो माँगोगे मैं वही दूँगी।
—अच्छा अभी जाने दो, समय आने पर माँग लूँगा, कहते हुए मोहन ने अपने घर की राह ली। दूर से आती हुई भामा की सास ने मोहन को कुछ दोने में लिये हुए घर के भीतर जाते देखा था। किन्तु वह ज्योंही नजदीक पहुँची मोहन दूसरे रास्ते से अपने घर की तरफ़ जा चुका था। वे मोहन से कुछ पूछ न सकीं पर उन्होंने यह अपनी आँखों से देखा था कि मोहन कुछ दोने में लाया है। किन्तु क्या लाया है वे न जान सकीं।
घर आते ही उन्होंने बहू से पूछा—मोहन दोने में क्या लाया था? भामा मन-ही-मन मुस्करायी और बोली—मिठाई।
बुढ़िया क्रोध से तिलमिला उठी, बोली—इतना खाती है, दिन भर बकरी की तरह मुँह चला करता है, फिर भी पेट नहीं भरता। बाजार से भी मिठाई मँगा-मँगा के खाती है। अभी मैं न देखती तो क्या तू कभी बतलाती?
भामा—(मुस्कराते हुए) तो बतलाती क्यों? कुछ बतलाने के लिए थोड़े ही मँगवाई थी?
—क्यों क्या मैं घर में कोई चीज़ ही नहीं हूँ? तेरे लिए तो मिठाई के लिए पैसे हैं, मैं चार पैसे दान-दक्षिणा के लिए माँगूँ तो सदा मुँह से नाहीं निकलती है। तेरा आदमी है, तो मेरा भी बेटा है। क्या उसकी कमाई में मेरा कोई हक ही नहीं! मुझे तो दो बार सूखी रोटी छोड़ कर कुछ भी न नसीब हो और तू मिठाई मँगा-मँगा के खाये। कर ले जितना तेरा जी चाहे। भगवान तो ऊपर देख रहा है। वह तो सज़ा देगा ही।
—(मुस्कराते हुए) क्यों कोस रही हो माँ जी! मिठाई एक दिन खा ही ली तो क्या हो गया? अभी रखी है, तुम भी ले लेना।
—चल रहने दे। अब इन मीठे पुचकारों से किसी और को बहकाना, मैं तेरे हाल सब जानती हूँ। तू समझती होगी कि तू जो कुछ करती है, वह कोई नहीं जानता। मैं तेरी नस-नस पहचानती हूँ। दुनिया में बहुत सी औरतें देखी हैं, पर सब तेरे तले-तले।
—(मुस्कराते हुए) सब मेरे तले-तले न रहेंगी तो करेंगी क्या? मेरी बराबरी कर लेना मामूली बात नहीं है। मैं ऐसी-वैसी थोड़े हूँ।
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