लोगों की राय

परिवर्तन >> बिखरे मोती

बिखरे मोती

सुभद्रा कुमारी चौहान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7135
आईएसबीएन :9781613010433

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

6 पाठक हैं

सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समय यत्र तत्र लिखी गई कहानियाँ

ठाकुर साहब के सब रिश्तेदार उनकी इन हरकतों से नाराज़ रहते थे। प्रायः उनके घर का आना-जाना छोड़-सा दिया था। किन्तु ठाकुर साहब अपनी वासना और धन के मद में इतने दीवाने हो रहे थे कि उनके घर कोई आवे चाहे न आवे उन्हें ज़रा भी परवाह न थी।

हेतसिंह ठाकुर साहब का चचेरा भाई था। छुटपन से ही वह ठाकुर साहब का आश्रित था। ठाकुर साहब हेतसिंह पर स्नेह भी सगे भाई की तरह रखते थे। वह बी.ए. फाइनल का विद्यार्थी था। बड़ा ही नेक और सच्चरित्र युवक था। ठाकुर साहब के इन कृत्यों से हेतसिंह को हार्दिक घृणा थी। प्रजा पर ठाकुर साहब का अत्याचार उससे सहा न जाता था। एक दिन इसी प्रकार किसी बात से नाराज होकर उसने घर छोड़ दिया। कहाँ गया, कुछ पता नहीं। ठाकुर साहब ने कुछ दिन तक तो उसकी खोज करवायी, फिर उन्हें इस व्यर्थ की बातों के लिए फुरसत ही कहाँ थी? वे तो अपना जीवन सफल कर रहे थे!

एक वर्ष बाद एक दिन फिर वह गाँव में आया। और उसी दिन ठाकुर साहब के यहाँ एक कुम्हार की नवविवाहिता सुन्दर बहू उड़ाकर लायी गयी थी। कुम्हार के घर हाय-हाय मची हुई थी। उसी समय हेतसिंह उधर से निकले उन्हें देखते ही कुम्हार ने उनसे अपना दुखड़ा रोया। हेतसिंह का क्रोध फिर ताज़ा हो गया। इसी प्रकार के एक किस्से से नाराज़ होकर हेतसिंह ने घर छोड़ा था। कहाँ तो वह भाई से मिलकर पिछली नाराज़गी को दूर करने आये थे, कहाँ फिर वही किस्सा सामने आ गया। वही प्रतिहिंसा के भाव फिर से हृदय में जाग्रत हो उठे। घृणा और क्रोध से उनका चेहरा लाल हो गया। जेब में हाथ डालकर देखा, रिवाल्वर भरा हुआ था। जब हेतसिंह घर पहुँचे उस समय ठाकुर साहब अपने मुसाहिबों के पास बैठ थे। हेतसिंह के देखते ही बड़े प्रसन्न होकर बोले—आओ भाई हेतसिंह, कहाँ थे अभी तक? बहुत दिनों में आये। बिना कुछ कहे सुने ही तुम कहाँ चले गये थे?

हेतसिंह ने ठाकुर साहब की किसी बात का उत्तर नहीं दिया। वह तो अपनी ही धुन में था, बोला—भैया, क्या मनका कुम्हार की बहू घर में है? यदि हो तो आप उसे वापिस पहुँचा दीजिये।

ठाकुर साहब की त्योरियाँ चढ़ गयीं। क्रोध को दबाते हुए बोले—हेतसिंह, तुम कल के छोकरे हो, तुम्हें इन बातों में न पड़ना चाहिए। जाओ, हाथ-मुँह धोकर कुछ खाओ-पियो!

हेतसिंह ने तीव्र स्वर में कहा—पर मैं क्या कहता हूँ! मनका कुम्हारा की बहू को आप वापस पहुँचा दीजिये।

—मैंने एक बार तुम्हें समझा दिया कि तुम्हें मेरे निजी मामलों में दखल देने की जरूरत नहीं है।

—फिर भी मैं पूछता हूँ कि आप उसे वापस पहुँचावेंगे या नहीं?

खेतसिंह गंभीरता से बोले—मैं तुम्हारी किसी बात का उत्तर देना नहीं चाहता, मेरे सामने से चले जाओ।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai