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बिखरे मोती

सुभद्रा कुमारी चौहान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7135
आईएसबीएन :9781613010433

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सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समय यत्र तत्र लिखी गई कहानियाँ

परिवर्तन

ठाकुर खेतसिंह—इस नाम को सुनते ही लोगों के मुँह पर घृणा और प्रतिहिंसा के भाव जाग्रत हो जाते थे। किन्तु उनके सामने किसी को उनके खिलाफ चूँ करने की भी हिम्मत न पड़ती। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, किसी भी रूप से कोई ठाकुर खेतसिंह के विरुद्ध एक तिनका न हिला सकता था। खुले तौर पर उसके विरुद्ध कुछ भी कह देना कोई मामूली बात न थी। दो-चार शब्द कहकर कोई ठाकुर साहब का तो कुछ बिगाड़ न सकता परन्तु आफ़त अवश्य बुला लेता था।

एक बार इसी प्रकार ठाकुर साहब के किसी कृत्य पर अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए मैकू अहीर ने कहा कि ‘हैं’ तो इतने बड़े आदमी पर काम ऐसे करते हैं कि कमीन भी करते लजायगा।’ बस, इतना कहना था कि बात नमक-मिर्च लगकर ठाकुर साहब के पास पहुँच गयी और बेचारे मैकू की शामत आ गयी। दूसरे दिन ड्योढ़ी पर मैकू बुलाया गया। दरवाजा बन्द करके ठाकुर साहब ने मैकू की खूब मरम्मत करवायी और साथ ही यह ताकीद भी कर दी गयी कि यदि इसकी ख़बर ज़रा भी बाहर गयी तो वह इस बार गोली का ही निशाना बनेगा। मैकू तो यह ज़हर का घूँट पीकर रह गया, किन्तु मैकू की स्त्री सुखिया से न रहा गया, उसने दस-बीस खरी-खोटी बककर अपने दिल के फफोले फोड़े ही। किन्तु यह असंभव था कि सुखिया दस-बीस खरी-खोटी सुना जाये और ठाकुर साहब को इसकी खबर न लगे।

नतीजा यह हुआ कि उसी दिन रात को मैकू के झोपड़े में आग लग गयी और उसकी गेहूँ की लहराती हुई फसल घोड़ों से कुचलवा दी गयी। दूसरे दिन बेचारे मैकू को बोरिया-बधना बाँधकर वह गाँव ही छोड़ देना पड़ा।

ठाकुर खेतसिंह बड़े भारी इलाक़ेदार थे, सोलह हज़ार सालाना सरकारी लगान देते थे। दरवाज़े पर हाथी झूमा करता। घोड़े, गाड़ी, मोटर और भी न जाने क्या-क्या उनके पास था। दो संतरी किरच बाँधे चौबीसों घंटे फाटक पर बने रहते। जब बाहर निकलते सदा दस-बीस लठैत जवान साथ होते। उस इलाके में न जाने कितने बैठ-बैठे मुफ्त खा रहे थे और न जाने कितने मटियामेट हो गये थे। पर इस पर टीका-टिप्पणी करके कौन आफ़त मोल ले? ठाकुर साहब का आतंक इलाके भर में छाया हुआ था। उनकी नादिरशाही को कौन नहीं जानता था? किसी की सुन्दर बहू-बेटी ठाकुर साहब ने नज़र तले पड़ भर जाय और उनकी तबिअत आ जाय, तो फिर चाहे आकाश-पाताल एक ही क्यों न करना पड़े, किसी न किसी तरह वह ठाकुर साहब के ज़नानखाने में दाखिल कर दी जाय। इसके लिए उन्हें इनाम दिया जाता। उड़ाया हुआ माल जिस क़ीमत का होता, इनाम भी उसी के अनुसार दिया जाता था।

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