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बिखरे मोती

सुभद्रा कुमारी चौहान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7135
आईएसबीएन :9781613010433

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सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समय यत्र तत्र लिखी गई कहानियाँ

इस घटना के कई दिन बाद एक दिन मास्टर बाबू छोटे राजा को पढ़ाकर ऊपर से नीचे उतर रहे थे और मैं नीचे से ऊपर जा रही थी। आखिरी सीढ़ी पर ही मेरी उनसे भेंट हो गयी। वे ठिठक गये, बोले—कैसी हो मँझली रानी?

—जीती हूँ।

—खुश रहा करो। इस प्रकार रहने से आखिर कुछ लाभ?

—जी को कैसे समझाऊँ, मास्टर बाबू?

—अच्छी-अच्छी पुस्तकें पढ़ा करो। उनसे अच्छा साथी संसार में तुम्हें कोई न मिलेगा।

—पर मैं अच्छी-अच्छी पुस्तकें लाऊँ कहाँ से?

—लाने का ज़िम्मा मेरा।

—यदि आप अच्छी पुस्तकें ला दिया करें तो इससे अच्छी और बात ही क्या हो सकती है?

—यह कौन बड़ी बात है मँझली रानी! मेरे पास बहुत-सी पुस्तकें रखी हैं। उनमें से कुछ मैं तुम्हें ला दूँगा।

इस कृपा के लिए उन्हें धन्यवाद देती हुई मैं ऊपर चली और वे बाहर चले गये। मैंने ऊपर आँख उठाकर देखा तो बड़ी रानी खड़ी हुई, तीव्र दृष्टि से मेरी ओर देख रही थीं। मैं कुछ भी न बोलकर नीची निगाह किये हुए अपने कमरे में चली गयी।

दूसरे दिन मास्टर बाबू समय से कुछ पहले ही आये। उनके हाथ में कुछ पुस्तकें थीं। वे छोटे राजा के कमरे में न जाकर सीधे मेरे कमरे में आये और बाहर से ही आवाज दी। किन्तु दोनों दासियों में से उस समय एक भी हाजिर न थी। इसलिए मैंने ही उनसे कहा ‘आइए मास्टर बाबू!’ वे आकर बैठ गये। किताबों और लेखकों के नाम बतला कर वे मुझे किताब देने लगे ‘ये महात्मा गांधी की ‘आत्मकथा’ के दो भाग हैं। यह है बाबू प्रेमचंद की ‘रंगभूमि’ इसके भी दो भाग हैं। यह मैथिली बाबू का ‘साकेत’ और यह पंत जी का ‘पल्लव’। इसके अतिरिक्त और भी बहुत-सी पुस्तकें हैं। इन्हें तुम पढ़ लोगी, तब मैं तुम्हें और ला दूँगा।’’

इसके बाद वे ‘साकेत’ उठाकर, उर्मिला से लक्ष्मण की बिदा का जो सुन्दर चित्र मैथिली बाबू ने अंकित किया है, मुझे पढ़कर सुनाने लगे। इतने ही में मुझे वहाँ बड़ी रानी की झलक दीख पड़ी और उसके साथ मेरे कमरे के दोनों दरवाजे फटाफट बन्द हो गये। मास्टर बाबू ने एक बार मेरी तरफ, फिर दरवाजे की तरफ देखा और बोले—भाई, यह दरवाजा किसने बन्द कर दिया है? खोल दो।

जब कोई उत्तर न मिला तो मुझे क्रोध आ गया।

मैंने तीव्र स्वर में कहा—यह दरवाजा किसने बन्द किया है? खोलो। क्या मालूम नहीं है कि हम लोग भीतर बैठे हैं?

बड़ी रानी की कर्कश आवाज़ सुनायी दी—ठहरो, अभी खोल दिया जाएगा। तुम लोग भीतर हो, यही दिखाने के लिए दरवाजा बन्द किया गया है। पर देखने वाले भी ज़रा आ जायँ। यह नारकीय लीला अब ज्यादा दिन न चल सकेगी।

नारकीय लीला! मेरा माथा ठनका, हे भगवान। क्या पुस्तक पढ़ना भी नारकीय लीला है? इस प्रकार लगभग पन्द्रह मिनट हम लोग बन्द रहे। गुस्से से मास्टर बाबू का चेहरा लाल हो रहा था। उधर बाहर बड़े राजा, मँझले राजा और महाराज जी की आवाज़ मुझे सुनायी दी और उसके साथ ही कमरे का दरवाजा खुल गया।

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