उपन्यास >> आंख की किरकिरी आंख की किरकिरीरबीन्द्रनाथ टैगोर
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नोबेल पुरस्कार प्राप्त रचनाकार की कलम का कमाल-एक अनूठी रचना.....
आशा को निरुत्तर देख कर अन्नपूर्णा घबरा गईं। पूछा- 'सच-सच बता चुन्नी, बिहारी बीमार-वीमार तो नहीं है।'
आशा ने कहा - 'देख मौसी, उनकी बात उन्हीं से पूछ।'
अचरज से अन्नपूर्णा ने कहा - 'क्यों?'
आशा बोली - 'यह मैं नहीं बता सकती।' कह कर वह कमरे से बाहर चली गई।
अन्नपूर्णा चुपचाप बैठी सोचने लगीं - हीरे जैसा लड़का बिहारी, कैसा हो गया है कि उसका नाम सुनते ही चुन्नी उठ कर बाहर चली गई। किस्मत का फेर!
साँझ को अन्नपूर्णा पूजा पर बैठी थीं कि कोई गाड़ी बाहर आ कर रुकी। गाड़ीवान घर वाले को पुकारता हुआ दरवाजे पर थपकी देने लगा। पूजा करती हुई अन्नपूर्णा बोल उठीं - 'अरे लो! मैं तो भूल ही गई थी एकबारगी। आज कुंज की सास और उसकी बहन की दो लड़कियों के आने की बात थी इलाहाबाद से। शायद आ गईं सब। चुन्नी, बत्ती ले कर दरवाजा खोल जरा!'
लालटेन लिए आशा ने दरवाजा खोल दिया। बाहर बिहारी खड़ा है। वह बोल उठा - 'अरे यह क्या भाभी, मैंने तो सुना था, तुम काशी नहीं आओगी?'
आशा के हाथ से लालटेन छूट गई। उसे मानो भूत दिख गया। एक साँस में वह दुतल्ले पर भागी और घबरा कर चीख पड़ी - 'मौसी! तुम्हारे पैर पड़ती हूँ मैं, इनसे कह दो, आज ही चले जाएँ।'
पूजा के आसन पर अन्नपूर्णा चौंक उठीं। कहा - 'अरे, किनसे कह दूँ चुन्नी, किनसे?'
आशा ने कहा - 'बिहारी बाबू यहाँ भी आ गए!'
और बगल के कमरे में जा कर उसने दरवाजा बंद कर लिया।
नीचे खड़े बिहारी ने सब सुन लिया। वह उल्टे पाँवों भाग जाने को तैयार हो गया - लेकिन पूजा छोड़ कर अन्नपूर्णा जब नीचे उतर आईं तो देखा, बिहारी दरवाजे के पास जमीन पर बैठा है- उसके शरीर की सारी शक्ति चली गई है।
वह रोशनी नहीं ले आई थीं। अँधेरे में बिहारी के चेहरे का भाव न देख सकीं, बिहारी भी उन्हें न देख सका।
अन्नपूर्णा ने आवाज दी - 'बिहारी!'
बिहारी का बेबस शरीर एड़ी से चोटी तक बिजली की चोट से चौंक पड़ा। बोला - 'चाची, बस और एक शब्द भी न कहो, मैं चला।'
बिहारी ने जमीन पर ही माथा टेका, अन्नपूर्णा के पाँव भी न छुए। माँ जिस तरह गंगासागर में बच्चे को डाल आती है, अन्नपूर्णा ने उसी तरह रात के उस अँधेरे में चुप-चाप बिहारी का विसर्जन किया - पलट कर उसे पुकारा नहीं। देखते-ही-देखते गाड़ी बिहारी को ले कर ओझल हो गई।
आशा ने उसी रात महेंद्र को पत्र लिखा -
'आज शाम को एकाएक बिहारी यहाँ आए थे। बड़े चाचा कब तक कलकत्ता लौटेंगे, ठिकाना नहीं। तुम जल्दी आ कर मुझे यहाँ से ले जाओ।'
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