उपन्यास >> आंख की किरकिरी आंख की किरकिरीरबीन्द्रनाथ टैगोर
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नोबेल पुरस्कार प्राप्त रचनाकार की कलम का कमाल-एक अनूठी रचना.....
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एक ओर चाँद डूबता है, दूसरी और सूरज उगता है। आशा चली गई लेकिन महेंद्र के नसीब में अभी तक विनोदिनी के दर्शन नहीं। महेंद्र डोलता-फिरता, जब-तब किसी बहाने माँ के कमरे में पहुँच जाता - लेकिन विनोदिनी उसे पास आने की कोई मौका ही न देती।
महेंद्र को ऐसा उदास देख कर राजलक्ष्मी सोचने लगीं - 'बहू चली गई, इसीलिए महेंद्र को कुछ अच्छा नहीं लगता है।'
अब महेंद्र के सुख-दुख के लिहाज से माँ गैर जैसी हो गई है। हालाँकि इस बात के जहन में आते ही उसे मर्मांतक कष्ट हुआ! फिर भी वह महेंद्र को उदास देख कर चिंतित हो गईं।
उन्होंने विनोदिनी से कहा - 'इस बार इनफ्लुएंजा के बाद मुझे दमा-जैसा कुछ हो गया है। बार-बार सीढ़ियाँ चढ़ कर मुझसे ऊपर जाते नहीं बनता। महेंद्र के खाने-पीने का खयाल तुम्हीं को रखना है, बिटिया! उसकी हमेशा की आदत है, किसी के जतन के बिना महेंद्र रह नहीं सकता। देखो तो, बहू के जाने के बाद उसे पता नहीं क्या हो गया है। और बहू की भी बलिहारी, वह चली गई!'
विनोदिनी बोली - 'जरूरत क्या है, बुआ!'
राजलक्ष्मी बोलीं- 'अच्छा, कोई जरूरत नहीं। मुझसे जो हो सकेगा, वही करूँगी।'
और वह उसी समय महेंद्र के ऊपर वाले कमरे की झाड़-पोंछ करने जाने लगी। विनोदिनी कह उठी - 'तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं, तुम मत जाओ! मैं ही जाती हूँ। मुझे माफ करो बुआ, जैसा तुम कहोगी, करूँगी।'
राजलक्ष्मी लोगों की बातों की कतई परवाह नहीं करती। पति की मृत्यु के बाद से दुनिया और समाज में उन्हें महेंद्र के सिवाय और कुछ नहीं पता। विनोदिनी ने जब समाज की निंदा का इशारा किया, तो वह खीझ उठीं। जन्म से महेंद्र को देखती आई हैं, उसके जैसा भला लड़का मिलता कहाँ है? जब कोई उसकी आलोचना करता तो राजलक्ष्मी से रहा न जाता, उन्हें लगता कि इसी पल उसकी जबान गल क्यों नहीं रही!
महेंद्र कॉलेज से लौटा और आज अपने कमरे को देख कर ताज्जुब में पड़ गया। दरवाजा खोलते ही चंदन और धूप की खुशबू से घर महक उठा। मसहरी में रेशमी झालर बिछौने पर धप-धप धुली चादर और पुराने तकिए के बजाए दूसरा रेशमी फूल कढ़ा चौकोर तकिया - उसकी खूबसूरत कढ़ाई विनोदिनी की काफी दिनों की मेहनत का फल था। आशा उससे पूछा करती थी - 'ये चीजें तू बनाती आखिर किसके लिए है किरकिरी?' विनोदिनी हँस कर कहती - 'अपनी चिता की सेज के लिए। मरण के सिवा अपने सुहाग के लिए है भी कौन?'
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