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उपन्यास >> आंख की किरकिरी

आंख की किरकिरी

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : ebook
पुस्तक क्रमांक : 3984
आईएसबीएन :9781613015643

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नोबेल पुरस्कार प्राप्त रचनाकार की कलम का कमाल-एक अनूठी रचना.....

17

बीच में यह जो झमेला खड़ा हुआ, उसे एकबारगी चुका देने की नीयत से महेंद्र ने प्रस्ताव रखा कि अगले इतवार को दमदम के बगीचे में पिकनिक कर आएँ।

आशा बहुत खुश हो गई। लेकिन विनोदिनी राजी न हुई। उसके तैयार न होने से आशा और महेंद्र मायूस हो गए। उन्हें लगा, 'इन दिनों विनोदिनी न जाने क्यों दूर हट जाना चाहती है!'

तीसरे पहर बिहारी आया। विनोदिनी बोली - 'जरा देखिए तो बिहारी बाबू महेंद्र बाबू दमदम जा रहे हैं पिकनिक के लिए। मैं नहीं जाना चाहती, तो सुबह से दोनों मुझसे रूठे हैं।'

बिहारी बोला - 'नाराज होना उनका बेजा नहीं। आप साथ न गईं तो इनकी जो पिकनिक होगी, ईश्वर करे सातवें दुश्मन की भी वैसी न हो।'

विनोदिनी - 'फिर आप भी चलिए न! आप चलें, तो मैं भी चलूँगी।'

बिहारी - 'ठीक तो है। मगर बात यों है कि कर्म दरअसल कर्त्ता की इच्छा पर होता है। बाबू की क्या राय है।?'

बिहारी के प्रति इस पक्षपात से मालिक और मालकिन, दोनों ही भीतर-भीतर कुढ़ गए। बिहारी को साथ ले चलने की बात से महेंद्र का आधा उत्साह जाता रहा। वह बिहारी को हर तरह से यह जता देने को आतुर था कि उसकी मौजूदगी विनोदिनी को कभी पसंद नहीं - लेकिन अब तो उसे छोड़ जाना असंभव होगा।

महेंद्र ने कहा - 'बेजा क्या है, अच्छा ही तो है। लेकिन बिहारी, तुम्हारा खास ऐब है कि जहाँ जाते हो, वहाँ कोई-न-कोई हंगामा मचाने से बाज नहीं आते। या तो वहाँ आस-पास के बच्चों की जमात जुटा लोगे या फिर गोरों से मार-पीट की नौबत। क्या कर बैठोगे क्या पता?'

बिहारी महेंद्र की अनिच्छा को समझ गया। मन-ही-मन हँसा। बोला - 'दुनिया में यही तो मजा है। क्या से क्या हो जाए, कहाँ कौन-सा फसाद खड़ा हो जाए - पहले से कुछ नहीं कहा जा सकता। तो विनोद भाभी, तड़के ही चल देना पड़ेगा। मैं समय से हाजिर हो जाऊँगा।'

सामान और नौकरों के लिए एक थर्ड क्लास और उन लोगों के लिए एक सेकेण्ड क्लास की बग्घी लाई गई। खासा बड़ा एक पैक बक्स लिए बिहारी ठीक समय पर हाजिर हो गया।

महेंद्र ने कहा - 'अरे यह फिर क्या उठा लाए? नौकरों वाली गाड़ी में तो अब यह आएगा नहीं।'

बिहारी बोला-'आप परेशान न हों, मैं ठीक किए देता हूँ।'

विनोदिनी और आशा गाड़ी पर सवार हुए। बिहारी का क्या करे, महेंद्र जरा आगा-पीछा करने लगा। बिहारी ने अपना सामान गाड़ी के ऊपर पटका और आप कोच-बक्स पर जा बैठा।

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