लोगों की राय

उपन्यास >> आंख की किरकिरी

आंख की किरकिरी

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : ebook
पुस्तक क्रमांक : 3984
आईएसबीएन :9781613015643

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

103 पाठक हैं

नोबेल पुरस्कार प्राप्त रचनाकार की कलम का कमाल-एक अनूठी रचना.....

राजलक्ष्मी जल्दी से उनके नहाने-खाने का इंतजाम करने गईं। बिहारी को मालूम हुआ तो वह घोष की मठिया से दौड़ आया। अन्नपूर्णा को प्रणाम करके बोला - 'ऐसा भी होता है भला, हम सबको निर्दयी की तरह ठुकरा कर तुम चल दोगी?' आँसू जब्त करके अन्नपूर्णा ने कहा - 'मुझे अब फेरने की कोशिश मत करो, बिहारी, तुम लोग सुखी रहो, मेरे लिए कुछ रुका न रहेगा।'

बिहारी कुछ क्षण चुप रहा। फिर बोला - 'महेंद्र की किस्मत खोटी है, उसने तुम्हें रुखसत कर दिया।'

अन्नपूर्णा चौंक कर बोलीं - 'ऐसा मत कहो, मैं उस पर बिलकुल नाराज नहीं हूँ। मेरे गए बिना उनका भला न होगा।'

बहुत दूर ताकता हुआ बिहारी चुप बैठा रहा। अपने आँचल से सोने की दो बालियाँ निकाल कर अन्नपूर्णा बोलीं- 'बेटे, ये बालियाँ रख लो! बहू आए तो मेरा आशीर्वाद जता कर इन्हें पहना देना!'

बालियाँ मस्तक से लगा कर आँसू छिपाने के लिए बिहारी बगल के कमरे में चला गया।

जाते वक्त बोलीं- 'मेरे महेंद्र और मेरी आशा का ध्यान रखना, बिहारी!'

राजलक्ष्मी के हाथों उन्होंने एक कागज दिया। कहा - 'ससुर की जायदाद में मेरा जो हिस्सा है, वह मैंने इस वसीयत में महेंद्र को लिख दिया है। मुझे हर माह सिर्फ पन्द्रह रुपए भेज दिया करना!'

झुक कर उन्होंने राजलक्ष्मी के पैरों की धूल माथे लगाई और तीर्थ-यात्रा को निकल पड़ीं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book