लोगों की राय

उपन्यास >> आंख की किरकिरी

आंख की किरकिरी

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : ebook
पुस्तक क्रमांक : 3984
आईएसबीएन :9781613015643

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

103 पाठक हैं

नोबेल पुरस्कार प्राप्त रचनाकार की कलम का कमाल-एक अनूठी रचना.....

बिहारी हैरान रह गया। विनोदिनी बोली, 'तुम नहीं जानते, यह आघात तुम्हारा है और यह आघात तुम्हारे ही योग्य है। इसे तुम भी वापस नहीं ले सकते।'

मौसी के इतना समझाने-बुझाने के बावजूद विनोदिनी के लिए आशा अपने मन को निष्कंटक न कर सकी थी। राजलक्ष्मी के सेवा-जतन में दोनों साथ जुटी रहीं, पर जब से उसकी नजर विनोदिनी पर पड़ी, तभी उसके दिल को चोट लगी - जबान से आवाज न निकली और हँसने की कोशिश ने उसे दुखाया। विनोदिनी की कोई मामूली सेवा लेने में भी उसका मन नाराज रहता। शिष्टता के नाते विनोदिनी का लगाया पान उसे लेना पड़ा, लेकिन बाद में तुरंत थूक दिया है। लेकिन आज जब जुदाई की घड़ी आई, मौसी दोबारा घर-बार छोड़ कर जाने लगीं और आशा का हृदय आँसुओं से गीला हो उठा, तो विनोदिनी के लिए भी उसका मन भर आया। जो सब-कुछ छोड़-छाड़ कर एकबारगी जा रहा हो, उसे माफ न कर सके, ऐसे लोग दुनिया में कम ही हैं। उसे मालूम था, विनोदिनी महेंद्र को प्यार करती है, क्यों न करे महेंद्र को प्यार! महेंद्र को प्यार करना कितना जरूरी है इसे वह खुद अपने ही मन से जान रही थी। अपने प्याोर की उस वेदना से ही आज उसे विनोदिनी पर बड़ी दया हो आई। वह महेन्द्र  को छोड़कर सदा के लिए जा रही है, उसका जो दुस्स ह द:ख है, आशा अपने बहुत बड़े दुश्म।न के लिए भी उसकी कामना नहीं कर सकती। यह सोचकर उसकी आँखें भर आईं-कभी उसने विनोदिनी को प्याचर भी किया था। वह प्यारर उसके जी को छू गया। वह धीरे-धीरे विनोदिनी के समीप जा कर बड़ी ही करुणा के साथ, स्नेह के साथ, विषाद के साथ बोली, 'दीदी, जा रही हो?'

आशा की ठोड़ी पकड़ कर विनोदिनी ने कहा, 'हाँ बहन, जाने का समय आ गया। कभी तुमने मुझे प्यार किया था, अब अपने सुख के दिनों में उस प्यार का थोड़ा-सा अंश मेरे लिए रखना बहन, बाकी सब भूल जाना।'

महेंद्र ने आ कर नमस्ते करके कहा, 'माफ करना, भाभी!'

उसकी आँखों के कोनों से आँसू की दो बूँदें ढुलक पड़ीं। विनोदिनी ने कहा, 'तुम भी मुझे माफ करना, भाई साहब, भगवान तुम लोगों को सदा सुखी रखें!'

 

।। समाप्त ।।

...Prev |

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book